मुसकान / रामनरेश त्रिपाठी

हे मोहन! सीखा है तुमने किससे यह मुसकान? फूलों ने क्या दिया तुम्हें यह विश्वविमोहन ज्ञान? ऊषा ने क्या सिखलाया है यह मंजुल मुसकान? जिसका अट्टहास दिनकर है उज्ज्वल सत्य समान?

प्रेम-ज्योति / रामनरेश त्रिपाठी

रत्नों से सागर तारों से भरा हुआ नभ सारा है। प्रेम, अहा! अति मधुर प्रम का मंदिर हृदय हमारा है। सागर और स्वर्ग से बढ़कर मूल्यवान है हृदय-विकास। मणि-तारों से सौगुन होगा प्रेम-ज्योति से तम का नाश॥

उदारता / रामनरेश त्रिपाठी

आतप, वर्षा, शीत सहा, तत्पर की काया। माली ने उद्योग किया उद्यान सजाया। सींच सोहने सुमन-समूहों को विकसाया। सेवन किया सुगंध, सुधा-रसमय फल खाया। पर मूल्य कहाँ उसने लिया, कोकिल, बुलबुल, काक से। वे भी स्वतंत्र सुख से बसे फल खाए, गाए हँसे।

प्रेम / रामनरेश त्रिपाठी

(१) यथा ज्ञान में शांति, दया में कोमलता है। मैत्री में विश्वास, सत्य में निर्मलता है॥ फूलों में सौंदर्य, चंद्र में उज्ज्वलता है। संगति में आनंद, विरह में व्याकुलता है॥ जैसे सुख संतोष में तप में उच्च विचार है। त्यों मनुष्य के हृदय में शुद्ध प्रेम ही सार है॥ (२) पर-निंदा से पुण्य, क्रोध से… Continue reading प्रेम / रामनरेश त्रिपाठी

हार ही में जीत है / रामनरेश त्रिपाठी

तुम पुरुष हो, डर रहे हो व्यर्थ ही संसार से। जीत लेते हो नहीं क्यों त्याग से उपकार से? सिर कटाकर जी उठा उस दीप की देखो दशा। दब रहा था जो अँधेरे के निरंतर भार से॥ पिस गई तब प्रेमिका के हाथ चढ़ चूमी गई। मान मेहँदी को मिला है प्राण के उपहार से॥… Continue reading हार ही में जीत है / रामनरेश त्रिपाठी

परलोक / रामनरेश त्रिपाठी

जहाँ नहीं विद्वेष राग छल अहंकार है। जहाँ नहीं वासना न माया का विकार है। जहाँ नहीं विकराल काल का कुछ भी भय है। जहाँ नहीं रहता जीवन का कुछ संशय है। सुख-शांति-युक्त जिस देश में बसे हुए हैं प्रिय स्वजन। उस विमल अलौकिक देश में पथिक! करोगे कब गमन॥

कामना / रामनरेश त्रिपाठी

जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में। जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में। सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो। शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो। सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के सुखकर नियम। बस, उसी स्वतंत्र स्वदेश में जागें हे जगदीश! हम॥

राम कहाँ मिलेंगे / रामनरेश त्रिपाठी

ना मंदिर में ना मस्जिद में ना गिरजे के आसपास में। ना पर्वत पर ना नदियों में ना घर बैठे ना प्रवास में। ना कुंजों में ना उपवन के शांति-भवन या सुख-निवास में। ना गाने में ना बाने में ना आशा में नहीं हास में। ना छंदों में ना प्रबंध में अलंकार ना अनुप्रास में।… Continue reading राम कहाँ मिलेंगे / रामनरेश त्रिपाठी

प्रियतम / रामनरेश त्रिपाठी

सोकर तूने रात गँवाई। आकर रात लौट गए प्रियतम तू थी नींद भरी अलसाई। रहकर निपट निकट जीवन भर प्रियतम को पहचान न पाई। यौवन के दिन व्यर्थ बिताए प्रियतम की न कभी सुध आई। कभी न प्रियतम से हँस बोली कभी न मन से सेज बिछाई। आज साज सज सजनी कर तू प्रियतम की… Continue reading प्रियतम / रामनरेश त्रिपाठी

हैट के गुण / रामनरेश त्रिपाठी

दृग को दिमाग को ललाट को श्रवण को भी धूप से बचाती अति सुख पहुँचाती है। बीट से बचाती मारपीट से बचाती यह अपढ़ देहातियों में भय उपजाती है॥ पर इसमें है उपयोगिता विचित्र एक योरप-निवासियों की बुद्धि में जो आती है। सिर पर हैट रख चाहे जो अनर्थ करो, हैट यह ईश्वर की दृष्टि… Continue reading हैट के गुण / रामनरेश त्रिपाठी