बहुत जुकाम हुआ नंदू को, एक रोज वह इतना छींका। इतना छींका, इतना छींका, इतना छींका, इतना छींका। सब पत्ते गिर गए पेड़ के, धोखा हुआ उन्हें आंधी का!
चतुर चित्रकार / रामनरेश त्रिपाठी
चित्रकार सुनसान जगह में, बना रहा था चित्र, इतने ही में वहाँ आ गया, यम राजा का मित्र। उसे देखकर चित्रकार के तुरत उड़ गए होश, नदी, पहाड़, पेड़, पत्तों का, रह न गया कुछ जोश। फिर उसको कुछ हिम्मत आई, देख उसे चुपचाप, बोला-सुंदर चित्र बना दूँ, बैठ जाइए आप। डकरू-मुकरू बैठ गया वह,… Continue reading चतुर चित्रकार / रामनरेश त्रिपाठी
अतुलनीय जिनके प्रताप का / रामनरेश त्रिपाठी
अतुलनीय जिनके प्रताप का, साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर। घूम घूम कर देख चुका है, जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर। देख चुके है जिनका वैभव, ये नभ के अनंत तारागण। अगणित बार सुन चुका है नभ, जिनका विजय-घोष रण-गर्जन। शोभित है सर्वोच्च मुकुट से, जिनके दिव्य देश का मस्तक। गूँज रही हैं सकल दिशायें, जिनके जय गीतों… Continue reading अतुलनीय जिनके प्रताप का / रामनरेश त्रिपाठी
वह देश कौन सा है / रामनरेश त्रिपाठी
मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है? जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है? जिसके बड़े रसीले फल, कंद, नाज, मेवे। सब अंग में सजे… Continue reading वह देश कौन सा है / रामनरेश त्रिपाठी
पुष्प विकास / रामनरेश त्रिपाठी
एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें देख फूल उठे हाथ-पांव उपवन के । खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए, देख के लुटाए निज कोष सुबरन के ।। वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी, पाई न, लजा के रही बाहर भवन के । मारे अचरज के खुले थे सो खुले ही रहे, तब… Continue reading पुष्प विकास / रामनरेश त्रिपाठी
आगे बढ़े चलेंगे / रामनरेश त्रिपाठी
यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में । यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में । हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे । वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे ।। मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है । सरिता… Continue reading आगे बढ़े चलेंगे / रामनरेश त्रिपाठी
तिल्ली सिंह / रामनरेश त्रिपाठी
पहने धोती कुरता झिल्ली गमछे से लटकाये किल्ली कस कर अपनी घोड़ी लिल्ली तिल्ली सिंह जा पहुँचे दिल्ली पहले मिले शेख जी चिल्ली उनकी बहुत उड़ाई खिल्ली चिल्ली ने पाली थी बिल्ली तिल्ली ने थी पाली पिल्ली पिल्ली थी दुमकटी चिबिल्ली उसने धर दबोच दी बिल्ली मरी देख कर अपनी बिल्ली गुस्से से झुँझलाया चिल्ली… Continue reading तिल्ली सिंह / रामनरेश त्रिपाठी
चले चलो / रामनरेश त्रिपाठी
(१) आए और चले गए, कितने शिशिर वसंत। राही! तेरी राह का, कहीं न आया अंत॥ कहीं न आया अंत, तुझे तो चलना ही है। जीवन की यह आग, जलाकर जलना ही है॥ दम है साथी एक, यही नित आए जाए। तू मत हिम्मत हार, समय कैसा भी आए॥ (२) अपने दम को छोड़कर, कर… Continue reading चले चलो / रामनरेश त्रिपाठी
देख ली हमने मसूरी / रामनरेश त्रिपाठी
देख ली हमने मसूरी, मिट गई है साध मन की, स्वर्ग आ पहुँचे बिना तप, देख ली यह शक्ति धन की। प्राकृतिक सौंदर्य इसका, देखकर जी चाहता है, बस, यहीं बस जायँ पंक्षी बन, न याद आए वतन की। चोटियों तक पर्वतों पर लद रहीं हरियालियाँ हैं, मोतियों के हार-सी सड़कें गले उनके पड़ी हैं।… Continue reading देख ली हमने मसूरी / रामनरेश त्रिपाठी
दोष-दर्शन / रामनरेश त्रिपाठी
(१) किसी के दोष जब कहने लगो, तब न तुम खुद दोष अपने भूल जाना। किसी का घर अगर है काँच का तो, उसे क्यों चाहिए ढेले चलाना? (२) अगर धंधा नहीं इसके सिवा कुछ कि औरों के गुनाहों को गिनाओ। सुधारों की जरूरत है तुम्हें तो शुरू घर से करो क्यों दूर जाओ? (३)… Continue reading दोष-दर्शन / रामनरेश त्रिपाठी