।। राग सोरठी।। न बीचारिओ राजा राम को रसु। जिह रस अनरस बीसरि जाही।। टेक।। दूलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेके। राजे इन्द्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै।।१।। जानि अजान भए हम बावर सोच असोच दिवस जाही। इन्द्री सबल निबल बिबेक बुधि परमारथ परवेस नहीं।।२।। कहीअत आन अचरीअत आन… Continue reading न बीचारिओ राजा राम को रसु / रैदास
जिनि थोथरा पिछोरे कोई / रैदास
।। राग सोरठी।। जिनि थोथरा पिछोरे कोई। जो र पिछौरे जिहिं कण होई।। टेक।। झूठ रे यहु तन झूठी माया, झूठा हरि बिन जन्म गंवाया।।१।। झूठा रे मंदिर भोग बिलासा, कहि समझावै जन रैदासा।।२।।
मन मेरे सोई सरूप बिचार / रैदास
।। राग सोरठी।। मन मेरे सोई सरूप बिचार। आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।। जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा। जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।१।। कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई। बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और… Continue reading मन मेरे सोई सरूप बिचार / रैदास
माधौ भ्रम कैसैं न बिलाइ / रैदास
माधौ भ्रम कैसैं न बिलाइ। ताथैं द्वती भाव दरसाइ।। टेक।। कनक कुंडल सूत्र पट जुदा, रजु भुजंग भ्रम जैसा। जल तरंग पांहन प्रितमां ज्यूँ, ब्रह्म जीव द्वती ऐसा।।१।। बिमल ऐक रस, उपजै न बिनसै, उदै अस्त दोई नांहीं। बिगता बिगति गता गति नांहीं, बसत बसै सब मांहीं।।२।। निहचल निराकार अजीत अनूपम, निरभै गति गोब्यंदा। अगम… Continue reading माधौ भ्रम कैसैं न बिलाइ / रैदास
माधवे का कहिये भ्रम ऐसा / रैदास
माधवे का कहिये भ्रम ऐसा। तुम कहियत होह न जैसा।। टेक।। न्रिपति एक सेज सुख सूता, सुपिनैं भया भिखारी। अछित राज बहुत दुख पायौ, सा गति भई हमारी।।१।। जब हम हुते तबैं तुम्ह नांहीं, अब तुम्ह हौ मैं नांहीं। सलिता गवन कीयौ लहरि महोदधि, जल केवल जल मांही।।२।। रजु भुजंग रजनी प्रकासा, अस कछु मरम… Continue reading माधवे का कहिये भ्रम ऐसा / रैदास
किहि बिधि अणसरूं रे / रैदास
किहि बिधि अणसरूं रे, अति दुलभ दीनदयाल। मैं महाबिषई अधिक आतुर, कांमना की झाल।। टेक।। कह द्यंभ बाहरि कीयैं, हरि कनक कसौटी हार। बाहरि भीतरि साखि तू, मैं कीयौ सुसा अंधियार।।१।। कहा भयौ बहु पाखंड कीयैं, हरि हिरदै सुपिनैं न जांन। ज्यू दारा बिभचारनीं, मुख पतिब्रता जीय आंन।।२।। मैं हिरदै हारि बैठो हरी, मो पैं… Continue reading किहि बिधि अणसरूं रे / रैदास
जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं / रैदास
जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं। तुम सौं तोरि कवन सूँ जोरौं।। टेक।। तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा, तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।१।। जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ तुम्हारी पूजा, तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।२।। मैं हरि प्रीति सबनि सूँ तोरी, सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूँ जोरी।।३।। सब परहरि मैं तुम्हारी आसा, मन… Continue reading जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं / रैदास
रथ कौ चतुर चलावन हारौ / रैदास
रथ कौ चतुर चलावन हारौ। खिण हाकै खिण ऊभौ राखै, नहीं आन कौ सारौ।। टेक।। जब रथ रहै सारहीं थाके, तब को रथहि चलावै। नाद बिनोद सबै ही थाकै, मन मंगल नहीं गावैं।।१।। पाँच तत कौ यहु रथ साज्यौ, अरधैं उरध निवासा। चरन कवल ल्यौ लाइ रह्यौ है, गुण गावै रैदासा।।२।।
रे चित चेति चेति अचेत काहे / रैदास
रे चित चेति चेति अचेत काहे, बालमीकौं देख रे। जाति थैं कोई पदि न पहुच्या, राम भगति बिसेष रे।। टेक।। षट क्रम सहित जु विप्र होते, हरि भगति चित द्रिढ नांहि रे। हरि कथा सूँ हेत नांहीं, सुपच तुलै तांहि रे।।१।। स्वान सत्रु अजाति सब थैं, अंतरि लावै हेत रे। लोग वाकी कहा जानैं, तीनि… Continue reading रे चित चेति चेति अचेत काहे / रैदास
रे मन माछला संसार समंदे / रैदास
रे मन माछला संसार समंदे, तू चित्र बिचित्र बिचारि रे। जिहि गालै गिलियाँ ही मरियें, सो संग दूरि निवारि रे।। टेक।। जम छैड़ि गणि डोरि छै कंकन, प्र त्रिया गालौ जांणि रे। होइ रस लुबधि रमैं यू मूरिख, मन पछितावै न्यांणि रे।।१।। पाप गिल्यौ छै धरम निबौली, तू देखि देखि फल चाखि रे। पर त्रिया… Continue reading रे मन माछला संसार समंदे / रैदास