माधौ भ्रम कैसैं न बिलाइ / रैदास

माधौ भ्रम कैसैं न बिलाइ।
ताथैं द्वती भाव दरसाइ।। टेक।।
कनक कुंडल सूत्र पट जुदा, रजु भुजंग भ्रम जैसा।
जल तरंग पांहन प्रितमां ज्यूँ, ब्रह्म जीव द्वती ऐसा।।१।।
बिमल ऐक रस, उपजै न बिनसै, उदै अस्त दोई नांहीं।
बिगता बिगति गता गति नांहीं, बसत बसै सब मांहीं।।२।।
निहचल निराकार अजीत अनूपम, निरभै गति गोब्यंदा।
अगम अगोचर अखिर अतरक, न्रिगुण नित आनंदा।।३।।
सदा अतीत ग्यांन ध्यानं बिरिजित, नीरबिकांर अबिनासी।
कहै रैदास सहज सूंनि सति, जीवन मुकति निधि कासी।।४।।

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