हुआ सवेरा जागो भैया, खड़ी पुकारे प्यारी मैया। हुआ उजाला छिप गए तारे, उठो मेरे नयनों के तारे। चिड़िया फुर-फुर फिरती डोलें, चोंच खोलकर चों-चों बोलें। मीठे बोल सुनावे मैना, छोड़ो नींद, खोल दो नैना। गंगाराम भगत यह तोता, जाग पड़ा है, अब नहीं सोता। राम-राम रट लगा रहा है, सोते जग को जगा रहा… Continue reading उठो भई उठो / श्रीधर पाठक
कुक्कुटी / श्रीधर पाठक
कुक्कुट इस पक्षी का नाम, जिसके माथे मुकुट ललाम। निकट कुक्कुटी इसकी नार, जिस पर इसका प्रेम अपार। इनका था कुटुम परिवार, किंतु कुक्कुटी पर सब भार। कुक्कुट जी कुछ करें न काम, चाहें बस अपना आराम। चिंता सिर्फ इसकी को एक, घर के धंधे करें अनेक। नित्य कई एक अंडे देय, रक्षित रक्खे उनको… Continue reading कुक्कुटी / श्रीधर पाठक
चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / भावरा ग्राम-धरा / पृष्ठ १
मंजरित इस आम्र-तरु की छाँह में बैठो पथिक! तुम, मैं समीरण से कहूँ, वह अतिथि पर पंखा झलेगा। गाँव के मेहमान की अभ्यर्थना है धर्म सबका, वह हमारे पाहुने की भावनाओं में ढलेगा। नागरिक सुकुमार सुविधाएँ, सुखद अनुभूतियाँ बहु, दे कहाँ से तुम्हें सूखी पत्तियों का यह बिछावन। आत्मा की छाँह की, पर तुम्हें शीतलता… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / भावरा ग्राम-धरा / पृष्ठ १
चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ २
होश खोकर, जोश जो निर्दोष लोगों को सताए, पाप है वह जोश, ऐसे जोश में आना बुरा है। यदि वतन के दुश्मनों का खून पीने जोश आए, इस तरह के जोश से फिर होश में आना बुरा है। बढ़ रहे संकल्प से हम, लक्ष्य अपने सामने है, साथ है संबल हमारे, वतन की दीवानगी का।… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ २
चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ १
कौन कहता है कि हम हैं सरफिरे, खूनी, लुटेरे? कौन यह जो कापुस्र्ष कह कर हमें धिक्कारता हैं? कौन यह जो गालियों की भर्त्सना भरपेट करके, गोलियों से तेज, हमको गालियों से मारता है। जिन शिराओं में उबलता खून यौवन का हठीला, शान्ति का ठण्डा जहर यह कौन उनमें भर रहा है? मुक्ति की समरस्थली… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / क्रांति दर्शन / पृष्ठ १
चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / आत्म दर्शन / पृष्ठ १
चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं, फूटते ज्वालामुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं। कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है, चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं। विवश अधरों पर सुलगता गीत हूँ विद्रोह का मैं, नाश के मन पर नशे जैसा चढ़ा उन्माद हूँ मैं। मैं गुलामी का… Continue reading चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / आत्म दर्शन / पृष्ठ १
नई डायरी / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’
नई डायरी मुझे मिली है! इसमें अपना नाम लिखूँगा जो करने वो काम लिखूँगा, किसने मारा किसने डाँटा बदनामों के नाम गिनूँगा। खुशियों की इक कली खिली है, नई डायरी मुझे मिली है! कार्टून हैं मुझे बनाने हस्ताक्षर करने मनमाने, आप अगर रुपए देंगे तो सेठ बनेंगे जाने-माने। भेंट दीजिए, कलम हिली है, नई डायरी… Continue reading नई डायरी / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’
टिली लिली / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’
मैं ढपोर हूँ शंख बिना, ताक धिना-धिन, ताक धिना। मुझे अचानक परी मिली, आसमान में जुही खिली। टिली लिली जी टिली लिली मैं जाऊँगा पंख बिना ताक धिना धिन, ताक धिना! अगड़म-बगड़म बंबे बो, अस्सी, नब्बे, पूरे सौ। गेहूँ बोया, काटा जौ, उगा पेड़ कब बीज बिना ताक धिना-धिन, ताक धिना! बछड़ा भागा, भागी गौ,… Continue reading टिली लिली / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’
दादी के दाँत / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’
असली दाँत गिर गए कब के नकली हैं मजबूत, इनके बल पर मुस्काती है क्या अच्छी करतूत। बड़े बड़ों को आड़े लेती सब छूते हैं पैर, नाकों चने चबाने पड़ते जो कि चाहते खैर। उनका मुँह अब नहीं पोपला सही सलामत आँत, कभी नहीं खट्टे हो सकते दादी जी के दाँत।
कंतक थैया / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’
कंतक थैया घुनूँ मनइयाँ! चंदा भागा पइयाँ पइयाँ! यह चंदा चरवाहा है, नीले-नीले खेत में! बिल्कुल सैंत मैंत में, रत्नों भरे खेत में! किधर भागता, लइयाँ पइयाँ! कंतक थैया, घुनूँ मनइयाँ! अंधकार है घेरता, टेढ़ी आँखें हेरता! चाँद नहीं मुँह फेरता, रॉकेट को है टेरता! मुन्नू को लूँगा मैं दइयाँ! कंतक थैया घुनूँ मनइयाँ! मिट्टी… Continue reading कंतक थैया / श्रीकृष्णचंद्र तिवारी ‘राष्ट्रबंधु’