मान के हर प्रश्न पर / यश मालवीय

मन की ऋतु बदली तुम आए ! रात हुई उजली तुम आए ! ओस कणों से लगे बीतने घंटे आधे-पौने बाँसों लगे उछलने फिर से प्राणों के मृग-छौने फूल हुए-तितली तुम आए ! लगी दौड़ने तन पर जैसे कोई ढीठ गिलहरी दिये जले रोशनी नहाई पुलकी सूनी देहरी लिए दही-मछली तुम आए! आँगन की अल्पना… Continue reading मान के हर प्रश्न पर / यश मालवीय

सूनापन चहका-चहका / यश मालवीय

अभिवादन बादल-बादल ख़बर लिये वन-उपवन की कितने आशीर्वाद लिये पहली बरखा सावन की बरस-बरस हैं घन बरसे अब की भी घुमड़े बरसे लेकिन पिछली ऋतु जैसे मन के हिरन नहीं तरसे सूनापन चहका-चहका चिड़िया चहकी आँगन की रूनक-झुनक-झुन पायल की बूँदों की रुनझुन-रूनझुन सगुन हो रहे क्षण-क्षण पर स्वस्तिक सजा, मिटा असगुन घड़ी-घड़ी पर छवि… Continue reading सूनापन चहका-चहका / यश मालवीय