उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़… Continue reading उसूलों पे जहाँ आँच आये / वसीम बरेलवी
Category: Wasim Barelvi
मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है / वसीम बरेलवी
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना बुरे ज़माने… Continue reading मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है / वसीम बरेलवी