माँ / त्रिलोक महावर

कमर झुक गई माँ बूढ़ी हो गई प्यार वैसा ही है याद है कैसे रोया बचपन में सुबक-सुबक कर माँ ने पोंछे आँसू खुरदरी हथेलियों से कहानी सुनाते-सुनाते चुपड़ा ढेर सारा प्यार गालों पर सुबह-सुबह रोटी पर रखा ताजा मक्खन रात में सुनाईं सोने के लिए लोरियाँ इस उम्र में भी थकी नहीं माँ तो… Continue reading माँ / त्रिलोक महावर

बस्ता / त्रिलोक महावर

बस्ता बहुत भारी था ढोते-ढोते एक महीने में बेटी का वज़न घट गया इंग्लिश स्कूल के स्टैंडर्ड फर्स्ट में पढ़ते-पढ़ते दो बार लगाई गई मेरी पेशियाँ मास्टर जी परेशान मेरी बेटी क्यों नहीं करती फॉलो आख़िरकार तय कर ही लिया मैंने बस्ते का बोझ कुछ कम करना बेटी की ख़ातिर अब वह के०जी० टू में… Continue reading बस्ता / त्रिलोक महावर