ये दुख के दिन काटे हैं जिसने गिन गिनकर पल-छिन, तिन-तिन। आँसू की लड़ के मोती के हार पिरोये, गले डालकर प्रियतम के लखने को शशिमुख दुःखनिशा में उज्ज्वल अमलिन।
Category: Suryakant Tripathi ‘Nirala’
वासना-समासीना, महती जगती दीना / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
वासना-समासीना, महती जगती दीना। जलद-पयोधर-भारा, रवि-शशि-तारक-हारा, व्योम-मुखच्छबिसारा शतधारा पथ-हीना। ॠषिकुल-कल-कण्ठस्तुति, दिव्य-शस्य-सकलाहुति, निगमागम-शास्त्रश्रुति रासभ-वासव-वीणा।
सहज-सहज कर दो; / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
सहज-सहज कर दो; सकलश रस भर दो। ठग ठगकर मन को लूट गये धन को, ऐसा असमंजस, धिक जीवन-यौवन को; निर्भय हूँ, वर दो। जगज्जाल छाया, माया ही माया, सूझता नहीं है पथ अन्धकार आया; तिमिर-भेद शर दो।
गीत गाने दो मुझे / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे, हाथ जो पाथेय थे, ठग- ठाकुरों ने रात लूटे, कंठ रूकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो। भर गया है ज़हर से संसार जैसे हार खाकर, देखते हैं लोग लोगों को, सही परिचय न पाकर,… Continue reading गीत गाने दो मुझे / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
लिया दिया तुमसे मेरा था, / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
लिया-दिया तुमसे मेरा था, दुनिया सपने का डेरा था। अपने चक्कर से कुल कट गये, काम की कला से हट हट गये, छापे से तुम्हीं निपट पट गये, उलटा जो सीधा ढेरा था। सही आंख तुम्हीं दिखे पहले, नहले पर तुम्हीं रहे दहले, बहते थे जितने थे बहले, किसी जीभ तुमको टेरा था। तभी किनारे… Continue reading लिया दिया तुमसे मेरा था, / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
तुमने स्वर के आलोक-ढले / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
तुमने स्वर के आलोक-ढले गाये हैं गाने गले-गले। बचकर भव की भंगुरता से रागों के सुमनों के बासे रंग-रेणु-गन्ध के वे भासे मीड़ों के नीड़ों से निकले। नश्वरता पर सस्वर छाये जैसे पल्लव के दल आये, वन के वसन्त के मन भाये जैसे जन बैठे छाँह-तले। बोले, अब अपना पथ सूझा, भूला जीवन-प्रकरण बूझा, प्रबल… Continue reading तुमने स्वर के आलोक-ढले / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
वन-वन के झरे पात, / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
वन-वन के झरे पात, नग्न हुई विजन-गात। जैसे छाया के क्षण हंसा किसी को उपवन, अब कर-पुट विज्ञापन, क्षमापन, प्रपन्न प्रात। करुणा के दान-मान फूटे नव पत्र-गान, उपवन-उपवन समान नवल-स्वर्ग-रश्मि-जात।
तुमसे जो मिले नयन / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
तुमसे जो मिले नयन, दूर हुए दुरित-शयन। खिले अंग-अंग अमल सर के पातः-शतदल पावन-पवनोत्कल-पल, अलक-मन्द-गन्ध-वयन। खग-कुल कल-कण्ठ-राग फूटे नग, नगर, बाग, अधर-विधुर छुटे दाग, कर-कर सित-सुमन-चयन। अखिल के न खिले हुए, खले हिले-मिले हुए, एक ताग सिले हुए आये हो एक अयन।
क्यों मुझको तुम भूल गये हो / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
क्यों मुझको तुम भूल गये हो? काट डाल क्या, मूल गये हो। रवि की तीव्र किरण से पीकर जलता था जब विश्व प्रखरतर, तुम मेरे छाया के तरु पर डाल पवन से धूल गये हो। विफल हुई साधना देह की, असफल आराधना स्नेह की, बिना दीप की रात गेह की, उल्टे फलकर फूल गये हो।… Continue reading क्यों मुझको तुम भूल गये हो / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
पाप तुम्हारे पांव पड़ा था / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
पाप तुम्हारे पांव पड़ा था, हाथ जोड़कर ठांव खड़ा था। विगत युगों का जंग लगा था, पहिया चलता न था, रुका था, रगड़ कड़ी की थी, सँवरा था, पथ चलने का काम बड़ा था। जड़ता की जड़तक मारी थी, ऐसी जगने की बारी थी, मंजिल भी थककर हारी थी, ऐसे अपने नाँव चढ़ा था। सभी… Continue reading पाप तुम्हारे पांव पड़ा था / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”