देशांतर विमान दो / श्रीनिवास श्रीकांत

रातों-रात बदल जाते हैं फैसले रातों-रात दब जाता है आक्रोश होटलों में सहूलत की करवट लेती राजनीति विचार बदलते कोण-दर-कोण चाटता है सार्त्र और मार्क्यूस को सिरफिरों का हुजूम रक्तपिता रहता शोषित जातियों का एक नयी नस्ल का आदमी काँच हवेलियों में बंद है धूप का हर टुकड़ा आकाश का हर कोण अँजलियों के दर्पण… Continue reading देशांतर विमान दो / श्रीनिवास श्रीकांत

देशांतर विमान एक / श्रीनिवास श्रीकांत

पैरिस बुद्धिजीवियों से खाली है उद्यानों में नहीं खिलते ल्यू-चे के हाईकु बिंब नहीं गुज़रते गलियों में धुंधलकों के रेवड़ पिकासो अपने आदम कद समेत ले चुका जल जल-समाधि फ्रांस के अंगूरी तटों से उठती है महज ह्विसकी और शैंपेन की ईथर-गन्ध ड्रमों के ड्रम तैर आते समन्दर पर न रहे वो सांढ युद्ध के… Continue reading देशांतर विमान एक / श्रीनिवास श्रीकांत