देशांतर विमान एक / श्रीनिवास श्रीकांत

पैरिस बुद्धिजीवियों से खाली है
उद्यानों में नहीं खिलते
ल्यू-चे के हाईकु बिंब
नहीं गुज़रते गलियों में
धुंधलकों के रेवड़
पिकासो अपने आदम कद समेत
ले चुका जल जल-समाधि
फ्रांस के अंगूरी तटों से उठती है
महज ह्विसकी और शैंपेन की
ईथर-गन्ध

ड्रमों के ड्रम तैर आते समन्दर
पर न रहे वो सांढ युद्ध के मैदान
और न हैंमिंग्वे जैसा सनकी तमाशबीन
शिष्ट बारों से ग़ायब हैं
सोचने वाले शराबी
ग़ायब है
फैशन पैरेडों से आती
पुराने इत्र की बू
बसरई मोतियों की दुधिया आब

बालकटी औरतें पढ़ती हैं
बालकनियों में अखबार
हॉट सेलर पत्रिकाओं में राशिफल
सोचती हैं
कितनी रह गई उम्र
कितना बढ गया
बैंक बैलैंस
कितने गिर गये
डॉलर के भाव

टेलिविज़न बताता है
समुद्र पार के हालचाल
इच्छाएं जहाँ चिकन हैं
चेतना
देह बाऊलों में
भापदार सूप
बजता रहता सास पैनों में संगीत
पैगों में बँट जाता समय

न कहीं कोई दर्द है
न धुएँ का एहसास
काँच घरों में धड़कते हैं दिल
काँच घरों से ग़ुज़रते हैं
धूप के कारवाँ
न इनको व्यापता है
वियतनाम
न निग्रीच्यूड
न चे-ग्वेवेराओं का भय
यह तो बना रहे
सोने के घर
चाँदी के महराबें
लोहे के मार्ग
यूरेनियम दो सौ बत्तीस से
चमका रहे
पाताल के कपाट
खोल रहे
कपाल के जबड़े
ज्ञान के तलघर
चढ़ मेरी माँ की छाती पर
कर रहे शव-साधना
घढ़ रहे कापालिक जंत्र-मंत्र

बंधी की बंधी रह गयी
भगवान की खेचरी
निष्क्रिय हुए पारद के उड्डयन
अंतरिक्ष में फैल रहा
शोर का प्रदूषण
पानियों पर ज़हर के ग्लोब्यूल

कहाँ गयीं
नाज़ियों के टोपों पर
टंकी हूई नागफनियाँ
कहाँ गये बर्लिन और पैरिस के
टूटे ब्यासबुत
क्या हुआ नदी पार करती
ईश्वरीय जातियों को

जिन्होंने छोड़े ख़ला में
झूठ के बैलून
चढ़ाया हिटलर को
सातवें आसमान पर

पूरा का पूरा माहौल
गर्मियों में बदल रहा है
और इब्बे-बतूता का सफ़रनामा
सुनता है
गोरिंग का नार्को ऐडिक्ट मुर्दा
वाटरगेट के काले दरवाज़े पर

मोहरबंद हो गये तथ्य
मोहरबंद हो गये अख़बार
मोहरबंद कोलोराडो की आदिम हँसी

कुर्सियों में धँसे हैं
सताओं के प्रभामण्डल
वाशिंगटन के आतंक-चक्र

सीख रहे न्यूयॉर्क के कोण
चीन-शास्त्र
उसके बिल्लौर में उतर रही
पुराने रेशम की झमक

दूसरे दौर के डिक्टेटर
तीसरे दौर के प्रालितेरियतों
के साथ मिलकर हो रहे पामाल

कहाँ गयी विश्वक्राँति
कहाँ गयी दिशावाम
किधर गया समय साम्य

क्रोध पहचान है फ़ासीवाद की
क्रोध की पहचान
शौल्ज़ेनित्सिन
दमन की पीड़ा पास्तरनाक
दमन का होना जनवाद का
मशीन में बदलना

और फ़ोड़ो देशों को
और खड़ी करो दीवारें
दबे हुए मलवों से
फूटेगा बारूद
यकीनन बारूद।

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