मेघ-गीत / श्रीकान्त जोशी

पहली बरखा का सौंधापन महक उठा मेरा वातायन। सूने आकाशों को छूकर ख़ाली-ख़ाली लौटी आँखें अब पूरे बादल भरती है जामुनिया जिनकी पोशाकें कैसे तोड़ रही है धरती अपने से अपना अनुशासन! ऋतुओं की ऋतु आने पर कौन नहीं जो फिर से गाता मैं गाता तो कौन गज़ब है पूरा विंध्याचल चिल्लाता क्षितिज-क्षितिज से दिशा-दिशा… Continue reading मेघ-गीत / श्रीकान्त जोशी

एक गीत मेरा भी गा दो / श्रीकान्त जोशी

एक गीत मेरा भी गा दो। स्वर की गलियों के बंजारे मेरे छंद करो उजियारे किरन-किरन में बाँध लुटा दो। एक गीत मेरा भी गा दो। स्वर बाला के राजदुलारे उठा गीत-नग नेक चुरा रे स्वर की सुषमा से चमका दो। एक गीत मेरा भी गा दो। स्वर मधुबन के कुँवर कन्हैया मेरा गीत एक… Continue reading एक गीत मेरा भी गा दो / श्रीकान्त जोशी