पैराडाइज़ लास्ट (एक) जबसे सर्रियलिस्ट कशमकश चली है उसके अन्दर जब से उसके अन्दर मची उथल-पुथल में रैडिकलिज़्म का समावेश हुआ है एडम को लगने लगा है कि ईव जो एक जिरहबख़तर थी उसके न्युराटिक अस्तित्व के लिए किसी दूसरे नक्षत्र पर रह गई है जबसे उसकी छाती में क़ैद आवाज़ों की दोस्ती उसकी आत्मा… Continue reading पैराडाइज़ लॉस्ट-1 / संजीव सूरी
Category: Sanjeev Suri
लड़कियाँ / संजीव सूरी
लड़कियाँ बड़ा अच्छा लगता है जब लदअकियाँ स्वप्न देखती हैं उनके ख़्वाब होते हैं उन्हीं की तरह रेशमी, मुलायम और महीन. स्वप्न देखती लड़कियों के पुरख़ुलूस चेहरों पर हो जाती है मुनक्कश सतरंगी गुलकारी. उड़ते हैं बादलों के फाहे होती है नदियों की कल-कल झरनों की झर-झर कलियों की चटकन झड़ते हैं हरसिंगार के फूल… Continue reading लड़कियाँ / संजीव सूरी