शहर मर रहा था और खतरा उन शरीफों से ज्यादा था जो आधी रात को किसी की अस्मत बचाने निकले थे और उठा लाए थे कुछ लड़कियों के सफ़ेद-स्याह दुप्पटे और कल्पना कर रहे थे उसकी निर्वस्त्र देह खुली छातियों, समतल पीठ, उभरे पेट और अंदर जाती नाभि की दुपट्टा बंद कमरे में रंगीन मिज़ाज… Continue reading शहर मर रहा है / संजय शेफर्ड
Category: Sanjay Shepherd
मुठ्ठी भर लड़ाईयां / संजय शेफर्ड
जिन पैरों को अथाह दूरी नापनी थी वह वस्तुतः थक चुके थे और मैंने कहीं पढ़ा भी था कि गर सफ़र लम्बा हो तो थकान जरूरी है इसीलिए रास्तें में आ रही इन तमाम थकानों को मैं अपने लिए उपहार घोषित करता हूं और पूरी दुनिया को चिल्ला- चिल्लाकर यह बता देना चाहता हूं कि… Continue reading मुठ्ठी भर लड़ाईयां / संजय शेफर्ड