सूख चला है जल जीवन का अर्थहीन तटबन्ध हुए शुष्क धरा पर तपता नभ है रीते घट सम्बन्ध हुए सन्देहों के कच्चे घर थे षड्यन्त्रों की सेन्ध लगी अहंकार की कंटक शैया मतभेदों में रात जगी अवसाद कलह की सत्ता में उत्सव पर प्रतिबन्ध हुए ढाई आखर वेद छोड़ कर हम बस इतने साक्षर थे… Continue reading रीते घट सम्बन्ध हुए / संध्या सिंह
Category: Sandhya Singh
प्रतिरोध / संध्या सिंह
पर्वत देता सदा उलाहने पत्थर से सब बन्द मुहाने मगर नदी को ज़िद ठहरी है सागर तक बह जाने की गिरवी सब कुछ ले कर बैठा संघर्षों का कड़क महाजन कर्तव्यों की अलमारी में बन्द ख़ुशी के सब आभूषण मगर नींद को अब भी आदत सपना एक दिखाने की मर्म छुपा है हर झुरमुट में… Continue reading प्रतिरोध / संध्या सिंह