त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे / रैदास

त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे, अंतरि ल्यौ लागी। एक अनूपम अनभई, किम होइ बिभागी।। टेक।। इक अभिमानी चातृगा, विचरत जग मांहीं। जदपि जल पूरण मही, कहूं वाँ रुचि नांहीं।।१।। जैसे कांमीं देखे कांमिनीं, हिरदै सूल उपाई। कोटि बैद बिधि उचरैं, वाकी बिथा न जाई।।२।। जो जिहि चाहे सो मिलै, आरत्य गत होई। कहै रैदास यहु गोपि… Continue reading त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे / रैदास

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भाई रे भ्रम भगति सुजांनि / रैदास

भाई रे भ्रम भगति सुजांनि। जौ लूँ नहीं साच सूँ पहिचानि।। टेक।। भ्रम नाचण भ्रम गाइण, भ्रम जप तप दांन। भ्रम सेवा भ्रम पूजा, भ्रम सूँ पहिचांनि।।१।। भ्रम षट क्रम सकल सहिता, भ्रम गृह बन जांनि। भ्रम करि करम कीये, भरम की यहु बांनि।।२।। भ्रम इंद्री निग्रह कीयां, भ्रंम गुफा में बास। भ्रम तौ लौं… Continue reading भाई रे भ्रम भगति सुजांनि / रैदास

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तेरा जन काहे कौं बोलै / रैदास

तेरा जन काहे कौं बोलै। बोलि बोलि अपनीं भगति क्यों खोलै।। टेक।। बोल बोलतां बढ़ै बियाधि, बोल अबोलैं जाई। बोलै बोल अबोल कौं पकरैं, बोल बोलै कूँ खाई।।१।। बोलै बोल मांनि परि बोलैं, बोलै बेद बड़ाई। उर में धरि धरि जब ही बोलै, तब हीं मूल गँवाई।।२।। बोलि बोलि औरहि समझावै, तब लग समझि नहीं… Continue reading तेरा जन काहे कौं बोलै / रैदास

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अब मोरी बूड़ी रे भाई / रैदास

अब मोरी बूड़ी रे भाई। ता थैं चढ़ी लोग बड़ाई।। टेक।। अति अहंकार ऊर मां, सत रज तामैं रह्यौ उरझाई। करम बलि बसि पर्यौ कछू न सूझै, स्वांमी नांऊं भुलाई।।१।। हम मांनूं गुनी जोग सुनि जुगता, हम महा पुरिष रे भाई। हम मांनूं सूर सकल बिधि त्यागी, ममिता नहीं मिटाई।।२।। मांनूं अखिल सुनि मन सोध्यौ,… Continue reading अब मोरी बूड़ी रे भाई / रैदास

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राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ / रैदास

राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ, सेवा करौं न दासा। गुनी जोग जग्य कछू न जांनूं, ताथैं रहूँ उदासा।। टेक।। भगत हूँ वाँ तौ चढ़ै बड़ाई। जोग करौं जग मांनैं। गुणी हूँ वांथैं गुणीं जन कहैं, गुणी आप कूँ जांनैं।।१।। ना मैं ममिता मोह न महियाँ, ए सब जांहि बिलाई। दोजग भिस्त दोऊ समि करि… Continue reading राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ / रैदास

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गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ / रैदास

गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ। गांवणहारा कौ निकटि बतांऊँ।। टेक।। जब लग है या तन की आसा, तब लग करै पुकारा। जब मन मिट्यौ आसा नहीं की, तब को गाँवणहारा।।१।। जब लग नदी न संमदि समावै, तब लग बढ़ै अहंकारा। जब मन मिल्यौ रांम सागर सूँ, तब यहु मिटी पुकारा।।२।। जब लग भगति मुकति… Continue reading गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ / रैदास

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अब मैं हार्यौ रे भाई / रैदास

अब मैं हार्यौ रे भाई। थकित भयौ सब हाल चाल थैं, लोग न बेद बड़ाई।। टेक।। थकित भयौ गाइण अरु नाचण, थाकी सेवा पूजा। काम क्रोध थैं देह थकित भई, कहूँ कहाँ लूँ दूजा।।१।। रांम जन होउ न भगत कहाँऊँ, चरन पखालूँ न देवा। जोई-जोई करौ उलटि मोहि बाधै, ताथैं निकटि न भेवा।।२।। पहली ग्यांन… Continue reading अब मैं हार्यौ रे भाई / रैदास

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परचै राम रमै जै कोइ / रैदास

परचै राम रमै जै कोइ। पारस परसें दुबिध न होइ।। टेक।। जो दीसै सो सकल बिनास, अण दीठै नांही बिसवास। बरन रहित कहै जे रांम, सो भगता केवल निहकांम।।१।। फल कारनि फलै बनराइं, उपजै फल तब पुहप बिलाइ। ग्यांनहि कारनि क्रम कराई, उपज्यौ ग्यानं तब क्रम नसाइ।।२।। बटक बीज जैसा आकार, पसर्यौ तीनि लोक बिस्तार।… Continue reading परचै राम रमै जै कोइ / रैदास

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प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी / रैदास

प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी।जग-जीवन राम मुरारी॥ गली-गली को जल बहि आयो, सुरसरि जाय समायो। संगति के परताप महातम, नाम गंगोदक पायो॥ स्वाति बूँद बरसे फनि ऊपर, सोई विष होइ जाई। ओही बूँद कै मोती निपजै, संगति की अधिकाई॥ तुम चंदन हम रेंड बापुरे, निकट तुम्हारे आसा। संगति के परताप महातम, आवै बास सुबासा॥… Continue reading प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी / रैदास

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प्रभु जी तुम चंदन हम पानी / रैदास

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥ प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥ प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥ प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा। प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा॥

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