बारिश-2 / पंकज राग

वह साठ का दशक था मैं नया-नया पैदा हुआ था और मुझे यह सोचना अच्छा लगता है, कि उस वक़्त रेडियो पर मैंने भी सुना होगा किसी फ़िल्मी गीत मेम सौ-सौ वायलिनों को एक साथ बजते अपनी माँ के साथ बहुत सुरक्षित-सा चिपके हुए मेरे लिए शायद वही पहली बारिश की आवाज़ थी ।

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बारिश-1 / पंकज राग

बारिश का तेज पीटता है सड़कों को जैसे कई-कई देवता पीट रहे हों मनुष्यों को बार-बार गिरते हों उस पर और धराशायी करते हों जैसे उठा हुआ एक हाथ वज्रपात कर रहा हो सदी पर जैसे छोटे-छोटे घरों में गीले-गीले हादसों से जल्दी-जल्दी होने लगा हो नदियों का जन्म जैसे इन्द्र की तनी हुई भौं… Continue reading बारिश-1 / पंकज राग

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