माई फूल को हिंडोरो बन्यो, फूल रही यमुना / नंददास

माई फूल को हिंडोरो बन्यो, फूल रही यमुना । फूलन के खंभ दोऊ, डांडी चार फूलन की, फूलन बनी मयार फूल रहे विलना ॥१॥ तामें झूले नंदलाल सखी सब गावें ख्याल, बायें अंग राधा प्यारी फूल भयी मगना । फूले पशु पंछी सब, देख ताप कटे सब, फूले सब ग्वाल बाल मिटे दुःख द्वंदना॥२॥ फूले… Continue reading माई फूल को हिंडोरो बन्यो, फूल रही यमुना / नंददास

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झूलत राधामोहन / नंददास

झूलत राधामोहन, कालिंदी के कूल। सघन लता सुहावनी, चहुंदिश फूलें फूल ॥१॥ सखी जुरी चहुँदिश तें, कमल नयन की ओर। बोलत वचन अमृतमय, नंददास चित्तचोर॥२॥

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जुरि चली हें बधावन नंद महर घर / नंददास

जुरि चली हें बधावन नंद महर घर सुंदर ब्रज की बाला। कंचन थार हार चंचल छबि कही न परत तिहिं काला॥१॥ डरडहे मुख कुमकुम रंग रंजित , राजत रस के एना। कंचन पर खेलत मानो खंजन अंजन युत बन नैना॥२॥ दमकत कंठ पदक मणि कुंडल, नवल प्रेम रंग बोरी। आतुर गति मानो चंद उदय भयो,… Continue reading जुरि चली हें बधावन नंद महर घर / नंददास

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सूर आयौ माथे पर, छाया आई पाँइन तर / नंददास

सूर आयौ माथे पर, छाया आई पाइँन तर, उतर ढरे पथिक डगर देखि छाँह गहरी । सोए सुकुमार लोग जोरि कै किंवार द्वार, पवन सीतल घोख मोख भवन भरत गहरी ॥ धंधी जन धंध छाँड़ि, जब तपत धूप डरन, पसु-पंछी जीव-जंतु छिपत तरुन सहरी । नंददास प्रभु ऐसे में गवन न कीजै कहुँ, माह की… Continue reading सूर आयौ माथे पर, छाया आई पाँइन तर / नंददास

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ऊधव के उपदेश सुनो ब्रज नागरी / नंददास

ऊधव को उपदेश सुनो ब्रज-नागरी रूप सील लावण्य सबै गुन आगरी प्रेम-धुजा रस रुपिनी, उपजावत सुख पुंज सुन्दरस्याम विलासिनी, नववृन्दावन कुंज सुनो ब्रज-नागरी कहन स्याम संदेस एक मैं तुम पे आयौ कहन समै संकेत कहूँ अवसर नहिं पायौ सोचत हीं मन में रह्यों,कब पाऊँ इक ठाऊँ कहि संदेस नंदलाल को, बहुरि मधुपुरी जाऊँ सुनो ब्रज-नागरी… Continue reading ऊधव के उपदेश सुनो ब्रज नागरी / नंददास

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रुचिर चित्रसारी सघन कुंज में मध्य कुसुम-रावटी राजै / नंददास

(राग विहाग) रुचिर चित्रसारी सघन कुंज में मध्य कुसुम-रावटी राजै । चंदन के रूख चहुँ ओर छवि छाय रहे, फूलन के अभूषन-बसन, फूलन सिंगार सब साजै ॥ सीयर तहखाने में त्रिविध समीर सीरी, चंदन के बाग मध चंदन-महल छाजै । नंददास प्रिया-प्रियतम नवल जोरि, बिधना रची बनाय, श्री ब्रजराज विराजै ॥

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तपन लाग्यौ घाम, परत अति धूप भैया / नंददास

(राग सारंग) तपन लाग्यौ घाम, परत अति धूप भैया, कहँ छाँह सीतल किन देखो । भोजन कूँ भई अबार, लागी है भूख भारी, मेरी ओर तुम पेखो ॥ बर की छैयाँ, दुपहर की बिरियाँ, गैयाँ सिमिट सब ही जहँ आवै । ’नंददास’ प्रभु कहत सखन सों, यही ठौर मेरे जीय भावै ॥

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आज वृंदाविपिन कुंज अद्भुत नई / नंददास

(राग सारंग) आज वृंदाविपिन कुंज अद्भुत नई । परम सीतल सुखद स्याम सोभित तहाँ, माधुरी मधुर और पीत फूलन छई ॥ विविध कदली खंभ, झूमका झुक रहे, मधुप गुंजार, सुर कोकिला धुनि ठई । तहाँ राजत श्री वृषभान की लाड़िली, मनों हो घनस्याम ढिंग उलही सोभा नई ॥ तरनि-तनया-तीर धीर समीर जहाँ, सुनत ब्रजबधू अति… Continue reading आज वृंदाविपिन कुंज अद्भुत नई / नंददास

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छोटो सो कन्हैया एक मुरली मधुर छोटी / नंददास

छोटो सो कन्हैया एक मुरली मधुर छोटी, छोटे-छोटे सखा संग छोटी पाग सिर की। छोटी सी लकुटि हाथ छोटे वत्स लिए साथ, छोटी कोटि छोटी पट छोटे पीताम्बर की॥ छोटे से कुण्डल कान, मुनिमन छुटे ध्यान, छोटी-छोटी गोपी सब आई घर-घर की। ‘नंददास प्रभु छोटे, वेद भाव मोटे-मोटे, खायो है माखन सोभा देखहुँ बदन की॥… Continue reading छोटो सो कन्हैया एक मुरली मधुर छोटी / नंददास

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