कविता सुनाई पानी ने-6 / नंदकिशोर आचार्य

कोई पर्याय नहीं होता किसी संज्ञा का सर्वनाम हो सकता है किसी का भी संज्ञा नहीं मिलती किसी से सर्वनाम घुल जाते एक-दूसरे में जैसे मैं और तुम हो सकते मिलकर हम काटती है संज्ञा जोड़ते हैं सर्वनाम इसीलिए बस तुम कहता हूँ तुम्हें कविता में नहीं लिखता हूँ तुम्हारा नाम ।

कविता सुनाई पानी ने-4 / नंदकिशोर आचार्य

कभी देखी हैं सूने स्टेशनों पर पटरियाँ जो नहीं ले जातीं किसी को कहीं पड़ी रहती हैं केवल वहीं उजड़ा हुआ डिब्बा कभी कोई आ खड़ा होता है वहाँ कुछ वक़्त कोई हमेशा ही खड़ा रहता है– आसरा किसी बेघर का ऎसे ख़राबों की हमनशीं इन पटरियों-सा बिछा हूँ मैं यहीं- कहीं पहुँचाने का वायदा… Continue reading कविता सुनाई पानी ने-4 / नंदकिशोर आचार्य

कविता सुनाई पानी ने-2 / नंदकिशोर आचार्य

क्या चीज़ें वही होती हैं अंधेरों में उजालों में होती हैं जैसी? ख़ुद अपने से पूछो : मैं क्या वही होता हूँ तुम्हारे उजालों से जब आता हूँ ख़ुद के अंधेरों में !

कविता सुनाई पानी ने-1 / नंदकिशोर आचार्य

एक कविता सुनाई पानी ने चुपके से धरती को सूरज ने सुन लिया उसको हो गया दृश्य उसका हवा भी कहाँ कम थी ख़ुशबू हो गई छूकर लय हो गया आकाश गा कर उसे एक मैं ही नहीं दे पाया उसे ख़ुद को नहीं हो पाया अपना आप ।