किला /जहाँ एक उजाले की रेखा खिंची है/ नंद चतुर्वेदी

वह किला पूरी तरह ध्वस्त हो गया था एक पूरे शानदार इतिहास के बावजूद वे वीरांगनाएँ आग में कूद गयी थीं अपने कृतघ्न और क्लीव पतियों के लिए जिन्हें प्रेम करना नहीं आता था वे सुन्दर और अप्रतिम थीं क्योंकि मर चुकी थीं और अब वे स्वतंत्र थे उनके पति प्रेम का विरूद गाने को… Continue reading किला /जहाँ एक उजाले की रेखा खिंची है/ नंद चतुर्वेदी

किताब /जहाँ एक उजाले की रेखा खिंची है/ नंद चतुर्वेदी

उस तरह मैं नहीं पढ़ सका जिस तरह चाहिए इस किताब में लिखी इबारत यह किताब जैसी भी बनी हो जिस किसी भी भाषा में लिखी गयी हो लेकिन जब कभी पढ़ी जाएगी बहुत कुछ विलुप्त हो जाएगा मैं ही कभी गा-गा कर पढ़ने लगूँगा कभी अटक-अटक कर मैं ही बदल दूगाँ उद्दण्डतापूर्वक कभी कुछ… Continue reading किताब /जहाँ एक उजाले की रेखा खिंची है/ नंद चतुर्वेदी