अतिथि से / महादेवी वर्मा

बनबाला के गीतों सा निर्जन में बिखरा है मधुमास, इन कुंजों में खोज रहा है सूना कोना मन्द बतास। नीरव नभ के नयनों पर हिलतीं हैं रजनी की अलकें, जाने किसका पंथ देखतीं बिछ्कर फूलों की पलकें। मधुर चाँदनी धो जाती है खाली कलियों के प्याले, बिखरे से हैं तार आज मेरी वीणा के मतवाले;… Continue reading अतिथि से / महादेवी वर्मा

मिलन / महादेवी वर्मा

रजतकरों की मृदुल तूलिका से ले तुहिन-बिन्दु सुकुमार, कलियों पर जब आँक रहा था करूण कथा अपनी संसार; तरल हृदय की उच्छ्वास जब भोले मेघ लुटा जाते, अन्धकार दिन की चोटों पर अंजन बरसाने आते! मधु की बूदों में छ्लके जब तारक लोकों के शुचि फूल, विधुर हृदय की मृदु कम्पन सा सिहर उठा वह… Continue reading मिलन / महादेवी वर्मा

विसर्जन / महादेवी वर्मा

निशा की, धो देता राकेश चाँदनी में जब अलकें खोल, कली से कहता था मधुमास बता दो मधुमदिरा का मोल; बिछाती थी सपनों के जाल तुम्हारी वह करुणा की कोर, गई वह अधरों की मुस्कान मुझे मधुमय पीडा़ में बोर; झटक जाता था पागल वात धूलि में तुहिन कणों के हार; सिखाने जीवन का संगीत… Continue reading विसर्जन / महादेवी वर्मा