समाधि के दीप से / महादेवी वर्मा

जिन नयनों की विपुल नीलिमा में मिलता नभ का आभास, जिनका सीमित उर करता था सीमाहीनों का उपहास; जिस मानस में डूब गये कितनी करुणा कितने तूफान! लोट रहा है आज धूल में उन मतवालों का अभिमान। जिन अधरों की मन्द हँसी थी नव अरुणोदय का उपमान, किया दैव ने जिन प्राणों का केवल सुषमा… Continue reading समाधि के दीप से / महादेवी वर्मा

निर्वाण / महादेवी वर्मा

घायल मन लेकर सो जाती मेघों में तारों की प्यास, यह जीवन का ज्वार शून्य का करता है बढकर उपहास। चल चपला के दीप जलाकर किसे ढूँढता अन्धाकार? अपने आँसू आज पिलादो कहता किनसे पारावार? झुक झुक झूम झूम कर लहरें भरतीं बूदों के मोती; यह मेरे सपनों की छाया झोकों में फिरती रोती; आज… Continue reading निर्वाण / महादेवी वर्मा

सन्देह / महादेवी वर्मा

बहती जिस नक्षत्रलोक में निद्रा के श्वासों से बात, रजतरश्मियों के तारों पर बेसुध सी गाती है रात! अलसाती थीं लहरें पीकर मधुमिश्रित तारों की ओस, भरतीं थीं सपने गिन गिनकर मूक व्यथायें अपने कोप। दूर उन्हीं नीलमकूलों पर पीड़ा का ले झीना तार, उच्छ्वासों की गूँथी माला मैनें पाई थी उपहार! यह विस्मॄति है… Continue reading सन्देह / महादेवी वर्मा

सूनापन / महादेवी वर्मा

मिल जाता काले अंजन में सन्ध्या की आँखों का राग, जब तारे फैला फैलाकर सूने में गिनता आकाश; उसकी खोई सी चाहों में घुट कर मूक हुई आहों में! झूम झूम कर मतवाली सी पिये वेदनाओं का प्याला, प्राणों में रूँधी निश्वासें आतीं ले मेघों की माला; उसके रह रह कर रोने में मिल कर… Continue reading सूनापन / महादेवी वर्मा

चाह / महादेवी वर्मा

चाहता है यह पागल प्यार, अनोखा एक नया संसार! कलियों के उच्छवास शून्य में तानें एक वितान, तुहिन-कणों पर मृदु कंपन से सेज बिछा दें गान; जहाँ सपने हों पहरेदार, अनोखा एक नया संसार! करते हों आलोक जहाँ बुझ बुझ कर कोमल प्राण, जलने में विश्राम जहाँ मिटने में हों निर्वाण; वेदना मधु मदिरा की… Continue reading चाह / महादेवी वर्मा

मेरा राज्य / महादेवी वर्मा

रजनी ओढे जाती थी झिलमिल तारों की जाली, उसके बिखरे वैभव पर जब रोती थी उजियाली; शशि को छूने मचली थी लहरों का कर कर चुम्बन, बेसुध तम की छाया का तटनी करती आलिंगन। अपनी जब करुण कहानी कह जाता है मलयानिल, आँसू से भर जाता जब सृखा अवनी का अंचल; पल्लव के ड़ाल हिंड़ोले… Continue reading मेरा राज्य / महादेवी वर्मा

कौन? / महादेवी वर्मा

ढुलकते आँसू सा सुकुमार बिखरते सपनों सा अज्ञात, चुरा कर अरुणा का सिन्दूर मुस्कराया जब मेरा प्रात, छिपा कर लाली में चुपचाप सुनहला प्याला लाया कौन? हँस उठे छूकर टूटे तार प्राण में मँड़राया उन्माद, व्यथा मीठी ले प्यारी प्यास सो गया बेसुध अन्तर्नाद, घूँट में थी साकी की साध सुना फिर फिर जाता है… Continue reading कौन? / महादेवी वर्मा

अधिकार / महादेवी वर्मा

वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना; वे नीलम के मेघ, नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज,नहीं जिसने देखी जाने की राह| वे सूने से नयन,नहीं जिनमें बनते आँसू मोती, वह प्राणों की सेज,नही जिसमें बेसुध पीड़ा सोती; ऐसा तेरा… Continue reading अधिकार / महादेवी वर्मा

संसार / महादेवी वर्मा

निश्वासों का नीड़, निशा का बन जाता जब शयनागार, लुट जाते अभिराम छिन्न मुक्तावलियों के बन्दनवार, तब बुझते तारों के नीरव नयनों का यह हाहाकार, आँसू से लिख लिख जाता है ’कितना अस्थिर है संसार’! हँस देता जब प्रात, सुनहरे अंचल में बिखरा रोली, लहरों की बिछलन पर जब मचली पड़तीं किरनें भोली, तब कलियाँ… Continue reading संसार / महादेवी वर्मा

मिटने का खेल / महादेवी वर्मा

मैं अनन्त पथ में लिखती जो सस्मित सपनों की बातें, उनको कभी न धो पायेंगी अपने आँसू से रातें! उड़ उड़ कर जो धूल करेगी मेघों का नभ में अभिषेक, अमिट रहेगी उसके अंचल में मेरी पीड़ा की रेख। तारों में प्रतिबिम्बित हो मुस्कायेंगीं अनन्त आँखें, होकर सीमाहीन, शून्य में मंड़रायेंगी अभिलाषें। वीणा होगी मूक… Continue reading मिटने का खेल / महादेवी वर्मा