गीत / महादेवी वर्मा

क्यों इन तारों को उलझाते? अनजाने ही प्राणों में क्यों आ आ कर फिर जाते? पल में रागों को झंकृत कर, फिर विराग का अस्फुट स्वर भर, मेरी लघु जीवन-वीणा पर क्या यह अस्फुट गाते? लय में मेरा चिरकरुणा-धन, कम्पन में सपनों का स्पन्दन, गीतों में भर चिर सुख चिर दुख कण कण में बिखराते!… Continue reading गीत / महादेवी वर्मा

शून्यता में निद्रा की बन / महादेवी वर्मा

शून्यता में निद्रा की बन, उमड़ आते ज्यों स्वप्निल घन; पूर्णता कलिका की सुकुमार, छलक मधु में होती साकार; हुआ त्यों सूनेपन का भान, प्रथम किसके उर में अम्लान? और किस शिल्पी ने अनजान, विश्व प्रतिमा कर दी निर्माण? काल सीमा के संगम पर, मोम सी पीड़ा उज्जवल कर। उसे पहनाई अवगुण्ठन, हास औ’ रोदन… Continue reading शून्यता में निद्रा की बन / महादेवी वर्मा

सुधि / महादेवी वर्मा

किस सुधिवसन्त का सुमनतीर, कर गया मुग्ध मानस अधीर? वेदना गगन से रजतओस, चू चू भरती मन-कंज-कोष, अलि सी मंडराती विरह-पीर! मंजरित नवल मृदु देहडाल, खिल खिल उठता नव पुलकजाल, मधु-कन सा छलका नयन-नीर! अधरों से झरता स्मितपराग, प्राणों में गूँजा नेह-राग, सुख का बहता मलयज समीर! घुल घुल जाता यह हिमदुराव, गा गा उठते… Continue reading सुधि / महादेवी वर्मा

रश्मि (कविता) / महादेवी वर्मा

चुभते ही तेरा अरुण बान! बहते कन कन से फूट फूट, मधु के निर्झर से सजल गान। इन कनक रश्मियों में अथाह, लेता हिलोर तम-सिन्धु जाग; बुदबुद से बह चलते अपार, उसमें विहगों के मधुर राग; बनती प्रवाल का मृदुल कूल, जो क्षितिज-रेख थी कुहर-म्लान। नव कुन्द-कुसुम से मेघ-पुंज, बन गए इन्द्रधनुषी वितान; दे मृदु… Continue reading रश्मि (कविता) / महादेवी वर्मा

निश्चय / महादेवी वर्मा

कितनी रातों की मैंने नहलाई है अंधियारी, धो ड़ाली है संध्या के पीले सेंदुर से लाली; नभ के धुँधले कर ड़ाले अपलक चमकीले तारे, इन आहों पर तैरा कर रजनीकर पार उतारे। वह गई क्षितिज की रेखा मिलती है कहीं न हेरे, भूला सा मत्त समीरण पागल सा देता फेरे! अपने उस पर सोने से… Continue reading निश्चय / महादेवी वर्मा

आना / महादेवी वर्मा

जो मुखरित कर जाती थी मेरा नीरव आवाहन, मैं ने दुर्बल प्राणों की वह आज सुला दी कम्पन! थिरकन अपनी पुतली की भारी पलकों में बाँधी, निस्पन्द पड़ी हैं आँखें बरसाने वाली आँखी। जिसके निष्फल जीवन ने जल जल कर देखीं राहें! निर्वाण हुआ है देखो वह दीप लुटा कर चाहें! निर्घोष घटाओं में छिप… Continue reading आना / महादेवी वर्मा

स्वप्न / महादेवी वर्मा

इन हीरक से तारों को कर चूर बनाया प्याला, पीड़ा का सार मिलाकर प्राणों का आसव ढाला। मलयानिल के झोंको से अपना उपहार लपेटे, मैं सूने तट पर आयी बिखरे उद्गार समेटे। काले रजनी अंचल में लिपटीं लहरें सोती थीं, मधु मानस का बरसाती वारिदमाला रोती थी। नीरव तम की छाया में छिप सौरभ की… Continue reading स्वप्न / महादेवी वर्मा

मेरी साध / महादेवी वर्मा

थकीं पलकें सपनों पर ड़ाल व्यथा में सोता हो आकाश, छलकता जाता हो चुपचाप बादलों के उर से अवसाद; वेदना की वीणा पर देव शून्य गाता हो नीरव राग, मिलाकर निश्वासों के तार गूँथती हो जब तारे रात; उन्हीं तारक फूलों में देव गूँथना मेरे पागल प्राण हठीले मेरे छोटे प्राण! किसी जीवन की मीठी… Continue reading मेरी साध / महादेवी वर्मा

उस पार / महादेवी वर्मा

घोर तम छाया चारों ओर घटायें घिर आईं घन घोर; वेग मारुत का है प्रतिकूल हिले जाते हैं पर्वत मूल; गरजता सागर बारम्बार, कौन पहुँचा देगा उस पार? तरंगें उठीं पर्वताकार भयंकर करतीं हाहाकार, अरे उनके फेनिल उच्छ्वास तरी का करते हैं उपहास; हाथ से गयी छूट पतवार, कौन पहुँचा देगा उस पार? ग्रास करने… Continue reading उस पार / महादेवी वर्मा

अभिमान / महादेवी वर्मा

छाया की आँखमिचौनी मेघों का मतवालापन, रजनी के श्याम कपोलों पर ढरकीले श्रम के कन, फूलों की मीठी चितवन नभ की ये दीपावलियाँ, पीले मुख पर संध्या के वे किरणों की फुलझड़ियाँ। विधु की चाँदी की थाली मादक मकरन्द भरी सी, जिस में उजियारी रातें लुटतीं घुलतीं मिसरी सी; भिक्षुक से फिर जाओगे जब लेकर… Continue reading अभिमान / महादेवी वर्मा