अलि अब सपने की बात– हो गया है वह मधु का प्रात! जब मुरली का मृदु पंचम स्वर, कर जाता मन पुलकित अस्थिर, कम्पित हो उठता सुख से भर, नव लतिका सा गात! जब उनकी चितवन का निर्झर, भर देता मधु से मानससर, स्मित से झरतीं किरणें झर झर, पीते दृगजलजात! मिलनइन्दु बुनता जीवन पर,… Continue reading गीत(2) / महादेवी वर्मा
Category: Mahadevi Varma
मेरा पता / महादेवी वर्मा
स्मित तुम्हारी से छलक यह ज्योत्स्ना अम्लान, जान कब पाई हुआ उसका कहां निर्माण! अचल पलकों में जड़ी सी तारकायें दीन, ढूँढती अपना पता विस्मित निमेषविहीन। गगन जो तेरे विशद अवसाद का आभास, पूछ्ता ’किसने दिया यह नीलिमा का न्यास’। निठुर क्यों फैला दिया यह उलझनों का जाल, आप अपने को जहां सब ढूँढते बेहाल।… Continue reading मेरा पता / महादेवी वर्मा
आशा / महादेवी वर्मा
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में। झंझा की पहली नीरवता— सी नीरव मेरी साधें, भर देंगी उन्माद प्रलय का मानस की लघु कम्पन में। सोते जो असंख्य बुदबुद से बेसुध सुख मेरे सुकुमार, फूट पड़ेंगे दुखसागर की सिहरी धीमी स्पन्दन में। मूक हुआ जो… Continue reading आशा / महादेवी वर्मा
वे दिन / महादेवी वर्मा
नव मेघों को रोता था जब चातक का बालक मन, इन आँखों में करुणा के घिर घिर आते थे सावन! किरणों को देख चुराते चित्रित पंखों की माया, पलकें आकुल होती थीं तितली पर करने छाया! जब अपनी निश्वासों से तारे पिघलातीं रातें, गिन गिन धरता था यह मन उनके आँसू की पाँतें। जो नव… Continue reading वे दिन / महादेवी वर्मा
आह्वान / महादेवी वर्मा
फूलों का गीला सौरभ पी बेसुध सा हो मन्द समीर, भेद रहे हों नैश तिमिर को मेघों के बूँदों के तीर। नीलम-मन्दिर की हीरक— प्रतिमा सी हो चपला निस्पन्द, सजल इन्दुमणि से जुगनू बरसाते हों छबि का मकरन्द। बुदबुद को लड़ियों में गूंथा फैला श्यामल केश-कलाप, सेतु बांधती हो सरिता सुन— सुन चकवी का मूक… Continue reading आह्वान / महादेवी वर्मा
जीवन / महादेवी वर्मा
तुहिन के पुलिनों पर छबिमान, किसी मधुदिन की लहर समान; स्वप्न की प्रतिमा पर अनजान, वेदना का ज्यों छाया-दान; विश्व में यह भोला जीवन— स्वप्न जागृति का मूक मिलन, बांध अंचल में विस्मृतिधन, कर रहा किसका अन्वेषण? धूलि के कण में नभ सी चाह, बिन्दु में दुख का जलधि अथाह, एक स्पन्दन में स्वप्न अपार,… Continue reading जीवन / महादेवी वर्मा
कौन है? / महादेवी वर्मा
कुमुद-दल से वेदना के दाग़ को, पोंछती जब आंसुवों से रश्मियां; चौंक उठतीं अनिल के निश्वास छू, तारिकायें चकित सी अनजान सी; तब बुला जाता मुझे उस पार जो, दूर के संगीत सा वह कौन है? शून्य नभ पर उमड़ जब दुख भार सी, नैश तम में, सघन छा जाती घटा; बिखर जाती जुगनुओं की… Continue reading कौन है? / महादेवी वर्मा
जीवनदीप / महादेवी वर्मा
किन उपकरणों का दीपक, किसका जलता है तल? किसकी वर्ति, कौन करता इसका ज्वाला से मेल? शून्य काल के पुलिनों पर— आकर चुपके से मौन, इसे बहा जाता लहरों में वह रहस्यमय कौन? कुहरे सा धुंधला भविष्य है, है अतीत तम घोर; कौन बता देगा जाता यह किस असीम की ओर? पावस की निशि में… Continue reading जीवनदीप / महादेवी वर्मा
अतृप्ति / महादेवी वर्मा
चिर तृप्ति कामनाओं का कर जाती निष्फल जीवन, बुझते ही प्यास हमारी पल में विरक्ति जाती बन। पूर्णता यही भरने की ढुल, कर देना सूने घन; सुख की चिर पूर्ति यही है उस मधु से फिर जावे मन। चिर ध्येय यही जलने का ठंढी विभूति बन जाना; है पीड़ा की सीमा यह दुख का चिर… Continue reading अतृप्ति / महादेवी वर्मा
दुःख / महादेवी वर्मा
रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता; इस निदाघ के मानस में करुणा के स्रोत बहा जाता। उसमें मर्म छिपा जीवन का, एक तार अगणित कम्पन का, एक सूत्र सबके बन्धन का, संसृति के सूने पृष्ठों में करुणकाव्य वह लिख जाता। वह उर में आता बन पाहुन, कहता मन से, अब न कृपण… Continue reading दुःख / महादेवी वर्मा