नव्य न्याय का अनुशासन-2 / लक्ष्मीकांत वर्मा

तुम गुलाब की क्यारियों में आग लगना चाहते हो लगा दो : किन्तु गुलाब की सुगन्ध बचा लो तुम हरी-भरी लताओं को लपटों में बदलना चाहते हो बदल दो : किन्तु हरियाली मन में बसा लो तुम प्रतिमाएँ तोड़ना चाहते हो तोड़ दो : किन्तु आस्थाएँ ढाल लो तुम ज्ञान को नकारना चाहते हो नकार… Continue reading नव्य न्याय का अनुशासन-2 / लक्ष्मीकांत वर्मा

नव्य न्याय का अनुशासन-1 / लक्ष्मीकांत वर्मा

तुम्हारे इर्द-गिर्द फैलती अफ़वाहों से मैं नहीं घबराता तुम्हारे आक्रोश, क्रोध और आदेश से भी मैं नहीं डरता जब तुम चीख़ते-चिल्लाते, शोर मचाते हो मैं तुम्हें आश्चर्य से नहीं देखता, क़िताबों को फाड़कर जब तुम होली जलाते हो हर हरियाली को चिता की सुलगती आग में– बदलना चाहते हो, मौलश्री की घनी छाया में आफ़ताब… Continue reading नव्य न्याय का अनुशासन-1 / लक्ष्मीकांत वर्मा