नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे और भी हैं / खलीलुर्रहमान आज़मी

नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे और भी हैं कुछ बहाने मेरे जीने के लिए और भी हैं ठंडी-ठंडी सी मगर गम से है भरपूर हवा कई बादल मेरी आँखों से परे और भी हैं ज़िंदगी आज तलक जैसे गुज़ारी है न पूछ ज़िंदगी है तो अभी कितने मजे और भी हैं हिज्र तो हिज्र था… Continue reading नश्शा-ए-मय के सिवा कितने नशे और भी हैं / खलीलुर्रहमान आज़मी