कबीर हरि रस यौं पिया बाकी रही न थाकि। पाका कलस कुँभार का, बहुरि न चढ़हिं चाकि॥1॥ राम रसाइन प्रेम रस पीवत, अधिक रसाल। कबीर पीवण दुलभ है, माँगै सीस कलाल॥2॥ कबीर भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आइ। सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तो पिया न जाइ॥3॥ हरि रस पीया जाँणिये, जे कबहूँ न जाइ… Continue reading रस कौ अंग / साखी / कबीर
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परचा कौ अंग / साखी / कबीर
कबीर तेज अनंत का, मानी ऊगी सूरज सेणि। पति संगि जागी सूंदरी, कौतिग दीठा तेणि॥1॥ कोतिग दीठा देह बिन, मसि बिना उजास। साहिब सेवा मांहि है, बेपरवांही दास॥2॥ पारब्रह्म के तेज का, कैसा है उनमान। कहिबे कूं सोभा नहीं, देख्याही परवान॥3॥ अगम अगोचर गमि नहीं, तहां जगमगै जोति। जहाँ कबीरा बंदिगी, ‘तहां’ पाप पुन्य नहीं… Continue reading परचा कौ अंग / साखी / कबीर
ग्यान बिरह कौ अंग / साखी / कबीर
दीपक पावक आंणिया, तेल भी आंण्या संग। तीन्यूं मिलि करि जोइया, (तब) उड़ि उड़ि पड़ैं पतंग॥1॥ मार्या है जे मरेगा, बिन सर थोथी भालि। पड्या पुकारे ब्रिछ तरि, आजि मरै कै काल्हि॥2॥ हिरदा भीतरि दौ बलै, धूंवां प्रगट न होइ। जाके लागी सो लखे, के जिहि लाई सोइ॥3॥ झल उठा झोली जली, खपरा फूटिम फूटि।… Continue reading ग्यान बिरह कौ अंग / साखी / कबीर
बिरह कौ अंग / साखी / कबीर
रात्यूँ रूँनी बिरहनीं, ज्यूँ बंचौ कूँ कुंज। कबीर अंतर प्रजल्या, प्रगट्या बिरहा पुंज॥1॥ अबंर कुँजाँ कुरलियाँ, गरिज भरे सब ताल। जिनि थे गोविंद बीछुटे, तिनके कौण हवाल॥2॥ चकवी बिछुटी रैणि की, आइ मिली परभाति। जे जन बिछुटे राम सूँ, ते दिन मिले न राति॥3॥ बासुरि सुख नाँ रैणि सुख, ना सुख सुपिनै माँहि। कबीर बिछुट्या… Continue reading बिरह कौ अंग / साखी / कबीर
सुमिरण कौ अंग / साखी / कबीर
कबीर कहता जात हूँ, सुणता है सब कोइ। राम कहें भला होइगा, नहिं तर भला न होइ॥1॥ कबीर कहै मैं कथि गया, कथि गया ब्रह्म महेस। राम नाँव सतसार है, सब काहू उपदेस॥2॥ तत तिलक तिहूँ लोक मैं, राम नाँव निज सार। जब कबीर मस्तक दिया सोभा अधिक अपार॥3॥ भगति भजन हरि नाँव है, दूजा… Continue reading सुमिरण कौ अंग / साखी / कबीर
गुरुदेव कौ अंग / साखी / कबीर
सतगुर सवाँन को सगा, सोधी सईं न दाति। हरिजी सवाँन को हितू, हरिजन सईं न जाति॥1॥ बलिहारी गुर आपणैं द्यौं हाड़ी कै बार। जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥2॥ टिप्पणी: क-ख-देवता के आगे ‘कया’ पाठ है जो अनावश्यक है। सतगुर की महिमा, अनँत, अनँत किया उपगार। लोचन अनँत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार॥3॥ राम नाम… Continue reading गुरुदेव कौ अंग / साखी / कबीर
कबीर दोहावली / पृष्ठ १०
हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार । श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ॥ 901 ॥ या दुनिया दो रोज की, मत कर या सो हेत । गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख हेत ॥ 902 ॥ कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर । खाली हाथों वह गये,… Continue reading कबीर दोहावली / पृष्ठ १०
कबीर दोहावली / पृष्ठ ९
कुल खोये कुल ऊबरै, कुल राखे कुल जाय । राम निकुल कुल भेटिया, सब कुल गया बिलाय ॥ 801 ॥ दुनिया के धोखे मुआ, चला कुटुम की कानि । तब कुल की क्या लाज है, जब ले धरा मसानि ॥ 802 ॥ दुनिया सेती दोसती, मुआ, होत भजन में भंग । एका एकी राम सों,… Continue reading कबीर दोहावली / पृष्ठ ९
कबीर दोहावली / पृष्ठ ८
सेवक सेवा में रहै, सेवक कहिये सोय । कहैं कबीर सेवा बिना, सेवक कभी न होय ॥ 701 ॥ अनराते सुख सोवना, राते नींद न आय । यों जल छूटी माछरी, तलफत रैन बिहाय ॥ 702 ॥ यह मन ताको दीजिये, साँचा सेवक होय । सिर ऊपर आरा सहै, तऊ न दूजा होय ॥ 703… Continue reading कबीर दोहावली / पृष्ठ ८
कबीर दोहावली / पृष्ठ ७
निबैंरी निहकामता, स्वामी सेती नेह । विषया सो न्यारा रहे, साधुन का मत येह ॥ 601 ॥ मानपमान न चित धरै, औरन को सनमान । जो कोर्ठ आशा करै, उपदेशै तेहि ज्ञान ॥ 602 ॥ और देव नहिं चित्त बसै, मन गुरु चरण बसाय । स्वल्पाहार भोजन करूँ, तृष्णा दूर पराय ॥ 603 ॥ जौन… Continue reading कबीर दोहावली / पृष्ठ ७