झूठे सुख कौ सुख कहैं, मानत है मन मोद। खलक चवीणाँ काल का, कुछ मुख मैं कुछ गोद॥1॥ आज काल्हिक जिस हमैं, मारगि माल्हंता। काल सिचाणाँ नर चिड़ा, औझड़ औच्यंताँ॥2॥ काल सिहाँणै यों खड़ा, जागि पियारो म्यंत। रामसनेही बाहिरा तूँ क्यूँ सोवै नच्यंत॥3॥ सब जग सूता नींद भरि, संत न आवै नींद। काल खड़ा सिर… Continue reading काल कौ अंग / साखी / कबीर
Category: Kabir
सूरा तन कौ अंग / साखी / कबीर
काइर हुवाँ न छूटिये, कछु सूरा तन साहि। भरम भलका दूरि करि, सुमिरण सेल सँबाहि॥1॥ षूँड़ै षड़ा न छूटियो, सुणि रे जीव अबूझ। कबीर मरि मैदान मैं, करि इंद्राँ सूँ झूझ॥2॥ कबीर साईं सूरिवाँ, मन सूँ माँडै झूझ। पंच पयादा पाड़ि ले, दूरि करै सब दूज॥3॥ टिप्पणी: ख-पंच पयादा पकड़ि ले। सूरा झूझै गिरदा सूँ,… Continue reading सूरा तन कौ अंग / साखी / कबीर
हेत प्रीति सनेह कौ अंग / साखी / कबीर
कमोदनी जलहरि बसै, चंदा बसै अकासि। जो जाही का भावता, सो ताही कै पास॥1॥ टिप्पणी: ख-जो जाही कै मन बसै। कबीर गुर बसै बनारसी, सिष समंदा तीर। बिसार्या नहीं बीसरे, जे गुंण होइ सरीर॥2॥ जो है जाका भावता, जदि तदि मिलसी आइ। जाकी तन मन सौंपिया, सो कबहूँ छाँड़ि न जाइ॥3॥ स्वामी सेवक एक मत,… Continue reading हेत प्रीति सनेह कौ अंग / साखी / कबीर
गुरुसिष हेरा कौ अंग / साखी / कबीर
> ऐसा कोई न मिले, हम कों दे उपदेस। भौसागर में डूबता, कर गहि काढ़े केस॥1॥ ऐसा कोई न मिले, हम को लेइ पिछानि। अपना करि किरपा करे, ले उतारै मैदानि॥2॥ ऐसा कोई ना मिले, राम भगति का गीत। तनमन सौपे मृग ज्यूँ, सुने बधिक का गीत॥3॥ ऐसा कोई ना मिले, अपना घर देइ जराइ।… Continue reading गुरुसिष हेरा कौ अंग / साखी / कबीर
चित कपटी कौ अंग / साखी / कबीर
कबीर तहाँ न जाइए, जहाँ कपट का हेत। जालूँ कली कनीर की, तन रातो मन सेत॥1॥ टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग का पहला दोहा यह है- नवणि नयो तो का भयो, चित्त न सूधौं ज्यौंह। पारधिया दूणा नवै, मिघ्राटक ताह॥1॥ संसारी साषत भला, कँवारी कै भाइ। दुराचारी वेश्नों बुरा, हरिजन तहाँ न जाइ॥2॥ निरमल… Continue reading चित कपटी कौ अंग / साखी / कबीर
जीवन मृतक कौ अंग / साखी / कबीर
जीवन मृतक ह्नै रहै, तजै जगत की आस। तब हरि सेवा आपण करै, मति दुख पावै दास॥1॥ टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग में पहला दोहा यह है- जिन पांऊँ सै कतरी हांठत देत बदेस। तिन पांऊँ तिथि पाकड़ौ, आगण गया बदेस॥1॥ कबीर मन मृतक भया, दुरबल भया सरीर। तब पैडे लागा हरि फिरै, कहत… Continue reading जीवन मृतक कौ अंग / साखी / कबीर
सबद कौ अंग / साखी / कबीर
कबीर सबद सरीर मैं, बिनि गुण बाजै तंति। बाहरि भीतरि भरि रह्या, ताथैं छूटि भरंति॥1॥ सती संतोषी सावधान, सबद भेद सुबिचार। सतगुर के प्रसाद थैं, सहज सील मत सार॥2॥ सतगुर ऐसा चाहिए, जैसा सिकलीगर होइ। सबद मसकला फेरि करि, देह द्रपन करे सोइ॥3॥ सतगुर साँचा सूरिवाँ, सबद जु बाह्या एक। लागत ही में मिलि गया,… Continue reading सबद कौ अंग / साखी / कबीर
कुसबद कौ अंग / साखी / कबीर
टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग का पहला दोहा यह है- साईं सौं सब होइगा, बंदे थैं कुछ नाहिं। राई थैं परबत करे, परबत राई माहिं॥1॥ अणी सुहेली सेल की, पड़ताँ लेइ उसास। चोट सहारै सबद की, तास गुरु मैं दास॥1॥ खूंदन तो धरती सहै, बाढ़ सहै बनराइ। कुसबद तो हरिजन सहै, दूजै सह्या न… Continue reading कुसबद कौ अंग / साखी / कबीर
सम्रथाई कौ अंग / साखी / कबीर
नाँ कुछ किया न करि सक्या, नाँ करणे जोग सरीर। जे कुछ किया सु हरि किया, ताथै भया कबीर कबीर॥1॥ कबीर किया कछू न होत है, अनकीया सब होइ। जे किया कछु होत है, तो करता औरे कोइ॥2॥ जिसहि न कोई तिसहि तूँ, जिस तूँ तिस सब कोइ। दरिगह तेरी साँईंयाँ, नाँव हरू मन होइ॥3॥… Continue reading सम्रथाई कौ अंग / साखी / कबीर
बिर्कताई कौ अंग / साखी / कबीर
मेरे मन मैं पड़ि गई, ऐसी एक दरार। फटा फटक पषाँण ज्यूँ, मिल्या न दूजी बार॥1॥ मन फाटा बाइक बुरै, मिटी सगाई साक। जौ परि दूध तिवास का, ऊकटि हूवा आक॥2॥ चंदन माफों गुण करै, जैसे चोली पंन। दोइ जनाँ भागां न मिलै, मुकताहल अरु मंन॥3॥ टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-… Continue reading बिर्कताई कौ अंग / साखी / कबीर