मैंने जो कहा- हूँ मैं तेरा आशिक़े शैदा-ऐ- कानेमलाहत / इंशा अल्लाह खां

मैंने जो कहा- हूँ मैं तेरा आशिक़े [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”मनमोहक”]शैदा-ऐ- कानेमलाहत[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  । फ़रमाने लगे हँसके “सुनो और तमाशा- यह शक्ल, यह सूरत” ? आए जो मेरे घर में वह सब राहे करम से- मैं मूँद दी कुण्डी । मुँह फेर लगे कहने त‍आज्जुब से कि “यह क्या- ऐ तेरी यह ताक़त” ? लूटा करें इस तरह मज़े ग़ैर… Continue reading मैंने जो कहा- हूँ मैं तेरा आशिक़े शैदा-ऐ- कानेमलाहत / इंशा अल्लाह खां

फुटकर शेर / इंशा अल्लाह खां

1. सज गर्म, जबीं गर्म, निगह गर्म, अदा गर्म । वोह सरसे है ता नाख़ुने पा, नामे ख़ुदा गर्म ।। 2. परतौसे चाँदनी के है सहने बाग ठंडा । फूलों की सेज पर आ, करदे चिराग़ ठंडा ।। 3. लेके मैं ओढ़ूँ, बिछाऊँ, लपेटूँ क्या करूँ ? रूखी, फीकी, सूखी, साखी महरबानी आपकी ।। 4.… Continue reading फुटकर शेर / इंशा अल्लाह खां

यह जो महंत बैठे हैं / इंशा अल्लाह खां

यह जो महंत बैठे हैं राधा के कुण्ड पर अवतार बन कर गिरते हैं परियों के झुण्ड पर शिव के गले से पार्वती जी लिपट गयीं क्या ही बहार आज है ब्रह्मा के रुण्ड पर राजीजी एक जोगी के चेले पे ग़श हैं आप आशिक़ हुए हैं वाह अजब लुण्ड मुण्ड पर ‘इंशा’ ने सुन… Continue reading यह जो महंत बैठे हैं / इंशा अल्लाह खां

छेड़ने का तो मज़ा तब है कहो और सुनो / इंशा अल्लाह खां

छेड़ने का तो मज़ा तब है कहो और सुनो बात में तुम तो ख़फ़ा हो गये, लो और सुनो तुम कहोगे जिसे कुछ, क्यूँ न कहेगा तुम को छोड़ देवेगा भला, देख तो लो, और सुनो यही इंसाफ़ है कुछ सोचो तो अपने दिल में तुम तो सौ कह लो, मेरी एक न सुनो और… Continue reading छेड़ने का तो मज़ा तब है कहो और सुनो / इंशा अल्लाह खां

अच्छा जो ख़फा हमसे हो तुम ए सनम अच्छा / इंशा अल्लाह खां

अच्छा जो खफा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा लो हम भी न बोलेंगे खुदा की क़सम अच्छा मशगूल क्या चाहिए इस दिल को किसी तौर ले लेंगे ढूँढ और कोई यार हम अच्छा गर्मी ने कुछ आग और ही सीने में लगा दी हर तौर ग़र्ज़ आप से मिलना है कम अच्छा ऐ… Continue reading अच्छा जो ख़फा हमसे हो तुम ए सनम अच्छा / इंशा अल्लाह खां

ज़ोफ आता है दिल को थाम तो लो / इंशा अल्लाह खां

ज़ो’फ आता है दिल को थाम तो लो बोलियो मत मगर सलाम तो लो कौन कहता है बोलो, मत बोलो हाथ से मेरे एक जाम तो लो इन्हीं बातों पे लौटता हूँ मैं गाली फिर दे के मेरा नाम तो लो इक निगाह पर बिके हैं इंशा आज मुफ़्त में मोल एक गुलाम तो लो

झूठा निकला करार तेरा / इंशा अल्लाह खां

झूठा निकला क़रार तेरा अब किसको है ऐतबार तेरा दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं देखा बस हम ने प्यार तेरा दम नाक में आ रहा था अपने था रात ये इंतिज़ार तेरा कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे मेरा क्या, इख्तियार तेरा लिपटूँ हूँ गले से आप अपने समझूँ कि है किनार तेरा “इंशा”… Continue reading झूठा निकला करार तेरा / इंशा अल्लाह खां

कमर बांधे हुए चलने पे यां सब यार बैठे हैं / इंशा अल्लाह खां

कमर बांधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं । बहोत आगे गए, बाक़ी जो हैं तैयार बैठे हैं ।। न छेड़ ए [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”वसन्तकाल की सुगन्धित वायु”]निक़हत-ए-बाद-ए-बहारी[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] , राह लग अपनी । तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं, हम बेज़ार बैठे हैं ।। [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”ध्यान”]तसव्वुर[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”आकाश”]अर्श[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] पर है और सर है पा-ए-साक़ी पर ।… Continue reading कमर बांधे हुए चलने पे यां सब यार बैठे हैं / इंशा अल्लाह खां