फ़रिश्ते से बेहतर है इन्सान बनना / अल्ताफ़ हुसैन हाली

बढ़ाओ न आपस में मिल्लत ज़ियादा मुबादा कि हो जाए नफ़रत ज़ियादा तक़ल्लुफ़ अलामत है बेग़ानगी की न डालो तक़ल्लुफ़ की आदत ज़ियादा करो दोस्तो पहले आप अपनी इज़्ज़त जो चाहो करें लोग इज़्ज़त ज़ियादा निकालो न रख़ने नसब में किसी के नहीं कोई इससे रज़ालत ज़ियादा करो इल्म से इक़्तसाबे-शराफ़त नसाबत से है ये… Continue reading फ़रिश्ते से बेहतर है इन्सान बनना / अल्ताफ़ हुसैन हाली

इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद/ अल्ताफ़ हुसैन हाली

इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद ख़ुद-ब-ख़ुद, दिल में है इक शख़्स समाया जाता शब को ज़ाहिद से न मुठभेड़ हुई ख़ूब हुआ नश्अ ज़ोरों पे था शायद न छुपाया जाता लोग क्यों शेख़ को कहते हैं कि अय्यार है वो उसकी सूरत से तो ऐसा नहीं पाया जाता अब तो [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip… Continue reading इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद/ अल्ताफ़ हुसैन हाली

धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली

धूम थी अपनी पारसाई की की भी और किससे आश्नाई की क्यों बढ़ाते हो इख़्तलात बहुत हमको ताक़त नहीं जुदाई की मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे तुमको आदत है ख़ुदनुमाई की न मिला कोई ग़ारते-ईमाँ रह गई शर्म पारसाई की मौत की तरह जिससे डरते थे साअत आ पहुँची उस जुदाई की ज़िंदा फिरने की… Continue reading धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली

सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल / अली सरदार जाफ़री

सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल रंग बन कर बिखर गया कोई गर्दिश-ए-ख़ूं रगों में तेज़ हुई दिल को छूकर गुज़र गया कोई फूल से खिल गये तसव्वुर में दामन-ए-शौक़ भर गया कोई

एक जू-ए-दर्द दिल से जिगर तक रवाँ है आज / अली सरदार जाफ़री

एक जू-ए-दर्द दिल से जिगर तक रवाँ है आज पिघला हुआ रगों में इक आतिश-फ़िशाँ है आज लब सी दिये हैं ता न शिकायत करे कोई लेकिन हर एक ज़ख़्म के मूँह में ज़बाँ है आज तारीकियों ने घेर् लिया है हयात को लेकिन किसी का रू-ए-हसीं दर्मियाँ है आज जीने का वक़्त है यही… Continue reading एक जू-ए-दर्द दिल से जिगर तक रवाँ है आज / अली सरदार जाफ़री

मेरी वादी में वो इक दिन यूँ ही आ निकली थी / अली सरदार जाफ़री

मेरी वादी में वो इक दिन यूँ ही आ निकली थी रंग और नूर का बहता हुआ धारा बन कर महफ़िल-ए-शौक़ में इक धूम मचा दी उस ने ख़ल्वत-ए-दिल में रही अन्जुमन-आरा बन कर शोला-ए-इश्क़ सर-ए-अर्श को जब छूने लगा उड़ गई वो मेरे सीने से शरारा बन कर और अब मेरे तसव्वुर का उफ़क़… Continue reading मेरी वादी में वो इक दिन यूँ ही आ निकली थी / अली सरदार जाफ़री

मैं और मेरी तन्हाई / अली सरदार जाफ़री

आवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तनहाई जाएँ तो कहाँ जाएँ हर मोड़ पे रुसवाई ये फूल से चहरे हैं हँसते हुए गुलदस्ते कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रस्ते राहें हैं तमाशाई रही भी तमाशाई मैं और मेरी तन्हाई अरमान सुलगते हैं सीने में चिता जैसे कातिल नज़र आती है दुनिया की… Continue reading मैं और मेरी तन्हाई / अली सरदार जाफ़री

आगे बढ़ेंगे / अली सरदार जाफ़री

वो बिजली-सी चमकी, वो टूटा सितारा, वो शोला-सा लपका, वो तड़पा शरारा, जुनूने-बग़ावत ने दिल को उभारा, बढ़ेंगे, अभी और आगे बढ़ेंगे! गरजती हैं तोपें, गरजने दो इनको दुहुल बज रहे हैं, तो बजने दो इनको, जो हथियार सजते हैं, सजने दो इनको बढ़ेंगे, अभी और आगे बढ़ेंगे! कुदालों के फल, दोस्तों, तेज़ कर लो,… Continue reading आगे बढ़ेंगे / अली सरदार जाफ़री

बेत‍आल्लुक़ी / अख़्तर-उल-ईमान

शाम होती है सहर होती है ये [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”गुज़रता हुआ समय”]वक़्त-ए-रवाँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] जो कभी मेरे सर पे [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”भारी पत्थर”]संग-गराँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  बन के गिरा राह में आया कभी मेरी [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”हिमालय”]हिमाला[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  बन कर जो कभी [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”समस्या, दिक़्कत”]उक्दा[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  बना ऐसा कि हल ही न हुआ अश्क बन कर मेरी आँखों से कभी टपका है जो कभी ख़ून-ए-जिगर… Continue reading बेत‍आल्लुक़ी / अख़्तर-उल-ईमान

आख़िरी मुलाक़ात / अख़्तर-उल-ईमान

आओ कि [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”प्रेम की मृत्यु का महोत्सव”]जश्न-ए-मर्ग-ए-मुहब्बत[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] मनाएँ हम आती नहीं कहीं से दिल-ए-ज़िन्दा की सदा सूने पड़े हैं कूचा-ओ-बाज़ार इश्क़ के है शम-ए-अंजुमन का नया हुस्न-ए-जाँ [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”पिघलता हुआ”]गुदाज़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] शायद नहीं रहे वो पतंगों के [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”उत्साह, उमंग”]वलवले[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ताज़ा न रख सकेगी रिवायात-ए-दश्त-ओ-दर वो [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”पाग़ल”]फ़ित्नासर[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  गए जिन्हें काँटें अज़ीज़ थे अब कुछ… Continue reading आख़िरी मुलाक़ात / अख़्तर-उल-ईमान