बेत‍आल्लुक़ी / अख़्तर-उल-ईमान

शाम होती है सहर होती है ये [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”गुज़रता हुआ समय”]वक़्त-ए-रवाँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] जो कभी मेरे सर पे [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”भारी पत्थर”]संग-गराँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  बन के गिरा राह में आया कभी मेरी [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”हिमालय”]हिमाला[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  बन कर जो कभी [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”समस्या, दिक़्कत”]उक्दा[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  बना ऐसा कि हल ही न हुआ अश्क बन कर मेरी आँखों से कभी टपका है जो कभी ख़ून-ए-जिगर… Continue reading बेत‍आल्लुक़ी / अख़्तर-उल-ईमान

आख़िरी मुलाक़ात / अख़्तर-उल-ईमान

आओ कि [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”प्रेम की मृत्यु का महोत्सव”]जश्न-ए-मर्ग-ए-मुहब्बत[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] मनाएँ हम आती नहीं कहीं से दिल-ए-ज़िन्दा की सदा सूने पड़े हैं कूचा-ओ-बाज़ार इश्क़ के है शम-ए-अंजुमन का नया हुस्न-ए-जाँ [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”पिघलता हुआ”]गुदाज़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] शायद नहीं रहे वो पतंगों के [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”उत्साह, उमंग”]वलवले[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ताज़ा न रख सकेगी रिवायात-ए-दश्त-ओ-दर वो [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”पाग़ल”]फ़ित्नासर[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  गए जिन्हें काँटें अज़ीज़ थे अब कुछ… Continue reading आख़िरी मुलाक़ात / अख़्तर-उल-ईमान

तहलील / अख़्तर-उल-ईमान

मेरी माँ अब मिट्टी के ढेर के नीचे सोती है उसके जुमले, उसकी बातों, जब वह ज़िंदा थी, कितना बरहम (ग़ुस्सा) करती थी मेरी रोशन तबई (उदारता), उसकी जहालत हम दोनों के बीच एक दीवार थी जैसे ‘रात को ख़ुशबू का झोंका आए, जि़क्र न करना पीरों की सवारी जाती है’ ‘दिन में बगूलों की… Continue reading तहलील / अख़्तर-उल-ईमान

मैं पयम्बर नहीं / अख़्तर-उल-ईमान

मैं पयंबर नहीं देवता भी नहीं दूसरों के लिए जान देते हैं वो सूली पाते हैं वो नामुरादी की राहों से जाते हैं वो मैं तो परवर्दा हूँ ऐसी तहज़ीब का जिसमें कहते हैं कुछ और करते हैं कुछ शर-पसंदों की आमाजगह अम्न की क़ुमरियाँ जिसमें करतब दिखाने में मसरूफ़ हैं मैं रबड़ का बना… Continue reading मैं पयम्बर नहीं / अख़्तर-उल-ईमान

काले-सफ़ेद परोंवाला परिंदा और मेरी एक शाम / अख़्तर-उल-ईमान

बर्तन,सिक्के,मुहरें, बेनाम ख़ुदाओं के बुत टूटे-फूटे मिट्टी के ढेर में पोशीदा चक्की-चूल्हे कुंद औज़ार, ज़मीनें जिनसे खोदी जाती होंगी कुछ हथियार जिन्हे इस्तेमाल किया करते होंगे मोहलिक हैवानों पर क्या बस इतना ही विरसा है मेरा ? इंसान जब यहाँ से आगे बढ़ता है, क्या मर जाता है ?