चलो फिर एक बार चलते हैं हक़ीक़त में खिलते हैं फूल जहाँ महकता है केसर जहाँ सरसों के फूल और लहलहाती हैं फसलें हँसते हैं रंग-बिरंगे फूल मंड़राती हैं तितलियाँ छेड़ते हैं भँवरें झूलती हैं झूलों में धड़कनें घेर लेती हैं सतरंगी दुप्पटों से सावन की फुहारों में चूमती है मन को देती है जीवन… Continue reading चलो, फिर एक बार / अंजना संधीर
Category: Hindi-Urdu Poets
कभी रुक कर ज़रूर देखना / अंजना संधीर
पतझड़ के सूखे पत्तों पर चलते हुए जो संगीत सुनाई पड़ता है पत्तों की चरमराहट का ठीक वैसी ही धुनें सुनाई पड़ती हैं भारी भरकम कपड़ों से लदे शरीर जब चलते हैं ध्यान से बिखरी हुई स्नो पर जो बन जाती है बर्फ़ कहीं ढीली होती है ये बर्फ़ तो छपाक-छपाक की ध्वनि उपजती है… Continue reading कभी रुक कर ज़रूर देखना / अंजना संधीर
ओवरकोट / अंजना संधीर
काले-लम्बे घेरदार ,सीधे विभिन्न नमूनों के ओवर कोट की भीड़ में मैं भी शामिल हो गई हूँ। सुबह हो या शाम, दोपहर हो या रात बर्फ़ीली हड्डियों में घुसती ठंडी हवाओं को घुटने तक रोकते हैं ये ओवरकोट। बसों में,सब वे स्टेशनों पर इधर-उधर दौड़ते तेज कदमों से चलते ये कोट, बर्फ़ीले वातावरण में अजब-सी… Continue reading ओवरकोट / अंजना संधीर
सभ्य मानव / अंजना संधीर
ईसा! मैं मानव हूँ। तुम्हें इस तरह सूली से नीचे नहीं देख सकता! नहीं तो तुममें और मुझमें क्या अंतर? बच्चों ने आज कीलें निकाल कर तुम्हें मुक्त कर दिया क्योंकि नादान हैं वे तुम्हारा स्थान कहाँ है वे नहीं जानते वे तो हैरान हैं तुम्हें इस तरह कीलों पर गड़ा देखकर मौका पाते ही,… Continue reading सभ्य मानव / अंजना संधीर
कैसे जलेंगे अलाव / अंजना संधीर
ठंडे मौसम और ठडे खानों का यह देश धीर-धीर मानसिक और शारीरिक रूप से भी कर देता है ठंडा। कुछ भी छूता नहीं है तब कँपकँपाता नहीं है तन धड़कता नहीं है मन मर जाता है यहाँ , मान, सम्मान और स्वाभिमान। बन जातीं हैं आदतें दुम हिलाने की अपने ही बच्चों से डरने की… Continue reading कैसे जलेंगे अलाव / अंजना संधीर
तुम अपनी बेटियों को… / अंजना संधीर
तुम अपनी बेटियों को इन्सान भी नहीं समझते क्यों बेच देते हो अमरीका के नाम पर? खरीददार अपने मुल्क में क्या कम हैं कि… बीच में सात समुंदर पार डाल देते हो? जहाँ से सिसकियाँ भी सुनाई न दे सकें डबडबाई आँखें दिखाई न दे सकें न जहाँ तुम मिलने जा सको न कोई तुम्हें… Continue reading तुम अपनी बेटियों को… / अंजना संधीर
अमरीका हड्डियों में जम जाता है / अंजना संधीर
वे ऊँचे-ऊँचे खूबसूरत “हाइवे” जिन पर चलती हैं कारें– तेज रफ़्तार से,कतारबद्ध, चलती कार में चाय पीते-पीते, टेलीफ़ोन करते, ‘टू -डॊर’ कारों में,रोमांस करते-करते, अमरीका धीरे-धीरे सांसों में उतरने लगता है। मूँगफ़ली और पिस्ते का एक भाव पेट्रोल और शराब पानी के भाव, इतना सस्ता लगता है सब्जियों से ज्यादा मांस कि ईमान डोलने लगता… Continue reading अमरीका हड्डियों में जम जाता है / अंजना संधीर
खयाल उसका हरएक लम्हा मन में रहता है / अंजना संधीर
ख़याल उसका हर एक लम्हा मन में रहता है वो शमअ बनके मेरी अंजुमन में रहता है। कभी दिमाग में रहता है ख़्वाब की मानिंद कभी वो चाँद की सूरत , गगन में रहता है। वो बह रहा है मेरे जिस्म में लहू बनकर वो आग बनके मेरे तन-बदन में रहता है। मैं तेरे पास… Continue reading खयाल उसका हरएक लम्हा मन में रहता है / अंजना संधीर
हम से जाओ न बचाकर आँखें / अंजना संधीर
हम से जाओ न बचाकर आँखें यूँ गिराओ न उठाकर आँखें ख़ामोशी दूर तलक फैली है बोलिए कुछ तो उठाकर आँखें अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं चैन से हैं उन्हें पाकर आँखें मुझको जीने का सलीका आया ज़िन्दगी ! तुझसे मिलाकर आँखें।
किताबे-शौक में क्या क्या निशानियाँ रख दीं / अंजना संधीर
किताबे-शौक़ में क्या-क्या निशानियाँ रख दीं कहीं पे फूल, कहीं हमने तितलियाँ रख दीं। कभी मिलेंगी जो तनहाइयाँ तो पढ़ लेंगे छुपाके हमने कुछ ऐसी कहानियाँ रख दीं। यही कि हाथ हमारे भी हो गए ज़ख़्मी गुलों के शौक में काँटों पे उंगलियाँ रख दीं। बताओ मरियम औ’ सीता की बेटियों की कसम ये किसने… Continue reading किताबे-शौक में क्या क्या निशानियाँ रख दीं / अंजना संधीर