सनातन मौसम / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

अभी तो मुझे आश्चर्य होता है कि कहाँ से फूटता है यह शब्दों का झरना कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज की आँख ऊँची होती है तो कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है इतने सारे शब्दों के बीच मैं बचाता हूँ अपना एकांत तथा मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूँ… Continue reading सनातन मौसम / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

तस्वीर के उस पार / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

तुम मुझे मेरी तस्वीर या पोस्टर में ढूढ़ने की व्यर्थ कोशिश मत करो मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूँ अपने आत्मविश्वास में अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में। तुम मुझे मेरे काम से ही जानो तुम मुझे छवि में नहीं लेकिन पसीने की महक में पाओ योजना के विस्तार की महक में ठहरो मेरी… Continue reading तस्वीर के उस पार / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

प्रयत्न / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

सर झुकाने की बारी आये ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा पर्वत की तरह अचल रहूँ व नदी के बहाव सा निर्मल शृंगारित शब्द नहीं मेरे नाभि से प्रकटी वाणी हूँ मेरे एक एक कर्म के पीछे ईश्वर का हो आशीर्वाद

आँख ये धन्य है / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

आँख ये धन्य है (कविता संग्रह) जिंदगी की आँच में तपे हुए मन की अभिव्यक्ति है – “आँख ये धन्य है”। गुजराती में यह संकलन ‎”आँख आ धन्य छे” के नाम से २००७ में प्रकाशित हुआ था। हिंदी में इसे आने में यदि सात वर्षों का लंबा समय लगा तो इसकी अनेक वजहें हो सकती… Continue reading आँख ये धन्य है / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

अमरीका में ब्याहने की कीमत अदा करने / अंजना संधीर

रसीले दागी आम को भी टोकरी से बाहर निकाल देते हैं लेकिन दागी आदमी जिसके पीछे लगा हो अमरीका सारे दाग मिटा देता है बूढ़ों को मिल जाती हैं कमसिन कुंवारी कलियां मसलने को, खुद को चरित्रवान खानदानी और महान संस्कृति के वारिस कहलाने वाले बच्चों वाली तलाकशुदा, बड़ी या कम उम्र की औरतों से… Continue reading अमरीका में ब्याहने की कीमत अदा करने / अंजना संधीर

मैं एक व्यक्ति हूं / अंजना संधीर

मैं एक व्यक्ति हूं मेरी मर्जी है, जिस से चाहूं इच्छा से मिलूं मां बनूं या गर्भपात करवा लूं बच्चे को पिता का नाम दूं या न दूं मुझे अधिकार है अपना जीवन खुद जियूं किसी की मर्जी मुझ पर थोपी नहीं जा सकती मैंने यह इस धरती पर आकर जाना है इसीलिये मैं अब… Continue reading मैं एक व्यक्ति हूं / अंजना संधीर

हिमपात नहीं हिम का छिड़काव हुआ है / अंजना संधीर

कोलंबिया की सीढ़ियों से उतरते हुए शाम के नज़ारों ने रोक दिए कदम ठंडी हवा के झोंके ने सरसराहट पैदा की बदन में और आँखों को भा गई पक्के रास्तों के आसपास बनी मिट्टी की खेतनुमाँ घास की तराशी हुई क्यारियाँ जिन की हरी-हरी घास पर कुदरत ने किया है हिम का छिड़काव पक्के रास्ते… Continue reading हिमपात नहीं हिम का छिड़काव हुआ है / अंजना संधीर

ज़िंदगी अहसास का नाम है / अंजना संधीर

याद आते हैं गर्मियों में उड़ते हुए रेत के कण हवा चलते ही अचानक उड़कर, पड़ते थे आँख में और कस के बंद हो जाती थी अपने आप आँखें पहुँच जाते थे हाथ अपने आप आँखों पर धूल से आँखों को बचाने के लिए कभी पड़ जाता था कोई कण तो चुभने लगता था आँख… Continue reading ज़िंदगी अहसास का नाम है / अंजना संधीर

चलो, फिर एक बार / अंजना संधीर

चलो फिर एक बार चलते हैं हक़ीक़त में खिलते हैं फूल जहाँ महकता है केसर जहाँ सरसों के फूल और लहलहाती हैं फसलें हँसते हैं रंग-बिरंगे फूल मंड़राती हैं तितलियाँ छेड़ते हैं भँवरें झूलती हैं झूलों में धड़कनें घेर लेती हैं सतरंगी दुप्पटों से सावन की फुहारों में चूमती है मन को देती है जीवन… Continue reading चलो, फिर एक बार / अंजना संधीर

कभी रुक कर ज़रूर देखना / अंजना संधीर

पतझड़ के सूखे पत्तों पर चलते हुए जो संगीत सुनाई पड़ता है पत्तों की चरमराहट का ठीक वैसी ही धुनें सुनाई पड़ती हैं भारी भरकम कपड़ों से लदे शरीर जब चलते हैं ध्यान से बिखरी हुई स्नो पर जो बन जाती है बर्फ़ कहीं ढीली होती है ये बर्फ़ तो छपाक-छपाक की ध्वनि उपजती है… Continue reading कभी रुक कर ज़रूर देखना / अंजना संधीर