साँस लेना भी सज़ा लगता है अब तो मरना भी रवा लगता है कोहे-ग़म पर से जो देखूँ,तो मुझे दश्त, आगोशे-फ़ना लगता है सरे-बाज़ार है यारों की तलाश जो गुज़रता है ख़फ़ा लगता है मौसमे-गुल में सरे-शाखे़-गुलाब शोला भड़के तो वजा लगता है मुस्कराता है जो उस आलम में ब-ख़ुदा मुझ को ख़ुदा लगता है… Continue reading साँस लेना भी सज़ा लगता है / अहमद नदीम क़ासमी
Category: Hindi-Urdu Poets
फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ / अहमद नदीम क़ासमी
फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ आँखों को बुझा लूँ कि हक़ीक़त को बदल दूँ हक़ बात कहूंगा मगर है जुर्रत-ए-इज़हार जो बात न कहनी हो वही बात न कह दूँ हर सोच पे ख़ंजर-सा गुज़र जाता है दिल से हैराँ हूँ कि सोचूँ तो किस अन्दाज़ में सोचूँ आँखें तो दिखाती हैं फ़क़त… Continue reading फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ / अहमद नदीम क़ासमी
ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही / अहमद नदीम क़ासमी
ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही तेरे बगै़र कोई आसरा नहीं, न सही तेरी तलब का तक़ाज़ा है ज़िन्दगी मेरी तेरे मुक़ाम का कोई पता नहीं, न सही तुझे सुनाई तो दी, ये गुरूर क्या कम है अगर क़बूल मेरी इल्तिजा नहीं, न सही तेरी निगाह में हूँ, तेरी बारगाह में हूँ अगर… Continue reading ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही / अहमद नदीम क़ासमी
क्या भरोसा हो किसी हमदम का / अहमद नदीम क़ासमी
क्या भरोसा हो किसी हमदम का चांद उभरा तो अंधेरा चमका सुबह को राह दिखाने के लिए दस्ते-गुल में है दीया शबनम का मुझ को अबरू, तुझे मेहराब पसन्द सारा झगड़ा इसी नाजुक ख़म का हुस्न की जुस्तजू-ए-पैहम में एक लम्हा भी नहीं मातम का मुझ से मर कर भी न तोड़ा जाए हाय ये… Continue reading क्या भरोसा हो किसी हमदम का / अहमद नदीम क़ासमी
गो मेरे दिल के ज़ख़्म जाती हैं / अहमद नदीम क़ासमी
गो मेरे दिल के ज़ख़्म ज़ाती हैं उनकी टीसें तो कायनाती हैं आदमी शशजिहात का दूल्हा वक़्त की गर्दिशें बराती हैं फ़ैसले कर रहे हैं अर्शनशीं आफ़तें आदमी पर आती हैं कलियाँ किस दौर के तसव्वुर में ख़ून होते ही मुस्कुराती हैं तेरे वादे हों जिनके शामिल-ए=हाल वो उमंगें कहाँ समाती हैं ज़ाती= निजी; कायनाती=… Continue reading गो मेरे दिल के ज़ख़्म जाती हैं / अहमद नदीम क़ासमी
जेहनों में ख़याल जल रहे हैं / अहमद नदीम क़ासमी
जेहनों में ख़याल जल रहे हैं| सोचों के अलाव-से लगे हैं| दुनिया की गिरिफ्त में हैं साये, हम अपना वुजूद ढूंढते हैं| अब भूख से कोई क्या मरेगा, मंडी में ज़मीर बिक रहे हैं| माज़ी में तो सिर्फ़ दिल दुखते थे, इस दौर में ज़ेहन भी दुखे हैं| सिर काटते थे कभी शहनशाह, अब लोग… Continue reading जेहनों में ख़याल जल रहे हैं / अहमद नदीम क़ासमी
ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है / अहमद नदीम क़ासमी
ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है । साँस तलवार हुई जाती है | जिस्म बेकार हुआ जाता है, रूह बेदार हुई जाती है | कान से दिल में उतरती नहीं बात, और गुफ़्तार हुई जाती है | ढल के निकली है हक़ीक़त जब से, कुछ पुर-असरार हुई जाती है | अब तो हर ज़ख़्म की मुँहबन्द… Continue reading ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है / अहमद नदीम क़ासमी
अब तक तो / अहमद नदीम क़ासमी
अब तक तो नूर-ओ-निक़हत-ओ-रंग-ओ-सदा कहूँ, मैं तुझको छू सकूँ तो ख़ुदा जाने क्या कहूँ लफ़्ज़ों से उन को प्यार है मफ़हूम् से मुझे, वो गुल कहें जिसे मैं तेरा नक्श-ए-पा कहूँ अब जुस्तजू है तेरी जफ़ा के जवाज़ की, जी चाहता है तुझ को वफ़ा आशना कहूँ सिर्फ़ इस के लिये कि इश्क़ इसी का… Continue reading अब तक तो / अहमद नदीम क़ासमी
हैरतों के सिल-सिले / अहमद नदीम क़ासमी
हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था आप किस की जुस्तजू में गुलिस्तां तक आ गए ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगा तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक… Continue reading हैरतों के सिल-सिले / अहमद नदीम क़ासमी
मुझे कल मेरा एक साथी मिला / अहमद नदीम क़ासमी
मुझे कल मेरा एक साथी मिला जिस ने ये राज़ खोला कि “अब जज्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गए” फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता मुझ से कहने लगा “अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो जहां से भी मिल जाएं दौलत – समटो ग़र्ज कुछ तो तहज़ीब सीखो”