इक सहमी सहमी सी आहट है / अहमद नदीम क़ासमी

इक सहमी सहमी सी आहट है, इक महका महका साया है एहसास की इस तन्हाई में यह रात गए कौन आया है ए शाम आलम कुछ तू ही बता, यह ढंग तुझे क्यों भाया है वोह मेरी खोज में निकला था और तुझ को ढूँढ के आया है मैं फूल समझ के चुन लूंगा इस… Continue reading इक सहमी सहमी सी आहट है / अहमद नदीम क़ासमी

दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे / अहमद नदीम क़ासमी

दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे, अब तुझे पा के यह उलझन है के खोये कैसे, ज़हन छलनी जो किया है, तो यह मजबूरी है, जितने कांटे हैं, वोह तलवों में पिरोयें कैसे, हम ने माना के बहुत देर है हश्र आने तक, चार जानिब तेरी आहट हो तो सोयें कैसे, कितनी… Continue reading दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे / अहमद नदीम क़ासमी

किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ / अहमद नदीम क़ासमी

किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ ज़ुल्म… Continue reading किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ / अहमद नदीम क़ासमी

न वो सिन है फ़ुर्सत ए इश्क़ का न वो दिन है कशफ़ ए जमाल के/ अहमद नदीम क़ासमी

न वो सिन है फ़ुर्सत-ए-इश्क़ का, न वो दिन हैं कशफ़-ए-जमाल के मगर अब भी दिल को जवाँ रखे, के मुद्दे ख़त-ओ-ख़ाल के ये तो गर्दाब-ए-हयात है, कोई इसकी जब्त से बचा नही मगर आज तक तेरी याद को मैं रखूं सम्हाल-सम्हाल के मैं अमीन-ओ-कद्र शनाज़ था, मुझे साँस-साँस का पाज़ था ये जबीं पे… Continue reading न वो सिन है फ़ुर्सत ए इश्क़ का न वो दिन है कशफ़ ए जमाल के/ अहमद नदीम क़ासमी

क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला / अहमद नदीम क़ासमी

क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकला ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने बू उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर डूब कर… Continue reading क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला / अहमद नदीम क़ासमी

इंक़लाब अपना काम करके रहा / अहमद नदीम क़ासमी

इंक़लाब अपना काम करके रहा बादलों में भी चांद उभर के रहा है तिरी जुस्तजू गवाह, कि तू उम्र-भर सामने नज़र के रहा रात भारी सही कटेगी जरूर दिन कड़ा था मगर गुज़र के रहा गुल खिले आहनी हिसारों के ये त’ आत्तर मगर बिखर के रहा अर्श की ख़िलवतों से घबरा कर आदमी फ़र्श… Continue reading इंक़लाब अपना काम करके रहा / अहमद नदीम क़ासमी

साँस लेना भी सज़ा लगता है / अहमद नदीम क़ासमी

साँस लेना भी सज़ा लगता है अब तो मरना भी रवा लगता है कोहे-ग़म पर से जो देखूँ,तो मुझे दश्त, आगोशे-फ़ना लगता है सरे-बाज़ार है यारों की तलाश जो गुज़रता है ख़फ़ा लगता है मौसमे-गुल में सरे-शाखे़-गुलाब शोला भड़के तो वजा लगता है मुस्कराता है जो उस आलम में ब-ख़ुदा मुझ को ख़ुदा लगता है… Continue reading साँस लेना भी सज़ा लगता है / अहमद नदीम क़ासमी

फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ / अहमद नदीम क़ासमी

फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ आँखों को बुझा लूँ कि हक़ीक़त को बदल दूँ हक़ बात कहूंगा मगर है जुर्रत-ए-इज़हार जो बात न कहनी हो वही बात न कह दूँ हर सोच पे ख़ंजर-सा गुज़र जाता है दिल से हैराँ हूँ कि सोचूँ तो किस अन्दाज़ में सोचूँ आँखें तो दिखाती हैं फ़क़त… Continue reading फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ / अहमद नदीम क़ासमी

ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही / अहमद नदीम क़ासमी

ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही तेरे बगै़र कोई आसरा नहीं, न सही तेरी तलब का तक़ाज़ा है ज़िन्दगी मेरी तेरे मुक़ाम का कोई पता नहीं, न सही तुझे सुनाई तो दी, ये गुरूर क्या कम है अगर क़बूल मेरी इल्तिजा नहीं, न सही तेरी निगाह में हूँ, तेरी बारगाह में हूँ अगर… Continue reading ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही / अहमद नदीम क़ासमी

क्या भरोसा हो किसी हमदम का / अहमद नदीम क़ासमी

क्या भरोसा हो किसी हमदम का चांद उभरा तो अंधेरा चमका सुबह को राह दिखाने के लिए दस्ते-गुल में है दीया शबनम का मुझ को अबरू, तुझे मेहराब पसन्द सारा झगड़ा इसी नाजुक ख़म का हुस्न की जुस्तजू-ए-पैहम में एक लम्हा भी नहीं मातम का मुझ से मर कर भी न तोड़ा जाए हाय ये… Continue reading क्या भरोसा हो किसी हमदम का / अहमद नदीम क़ासमी