घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत आ जाना तुम किसी चश्म-ए-ख़रीदार में मत आ जाना ख़ाक उड़ाना इन्हीं गलियों में भला लगता है चलते फिरते किसी दरबार में मत आ जाना यूँही ख़ुश-बू की तरह फैलते रहना हर सू तुम किसी दाम-ए-तलब-गार में मत आ जाना दूर साहिल पे खड़े रह के तमाशा करना… Continue reading घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत / ऐतबार साज़िद
Category: Hindi-Urdu Poets
छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं / ऐतबार साज़िद
छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं दर-ब-दर ख़ुद को जो दिन रात लिए फिरते हैं अपनी मजरूह अनाओं को दिलासे दे कर हाथ में कासा-ए-ख़ैरात लिए फिरते हैं शहर में हम ने सुना है के तेरे शोला-नवा कुछ सुलगते हुए नग़मात लिए फिरते हैं मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से मुनफ़रिद हम ग़म-ए-हालात… Continue reading छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं / ऐतबार साज़िद
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ / ऐतबार साज़िद
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ लोग ज़िंदा हैं अजब सूरत-ए-हालात के साथ फ़ैसला ये तो बहर-हाल तुझे करना है ज़ेहन के साथ सुलगना है के जज़्बात के साथ गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ अब के ये सोच के तुम ज़ख़्म-ए-जुदाई… Continue reading छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ / ऐतबार साज़िद
भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें / ऐतबार साज़िद
भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें कोई खिड़की नहीं खुलती किसी बाग़ीचे में साँस लेना भी है दुश्वार कहीं और चलें तू भी मग़मूम है मैं भी हूँ बहुत अफ़्सुर्दा दोनों इस दुख से हैं दो-चार कहीं और चलें ढूँढते हैं कोई सर-सब्ज़ कुशादा सी फ़ज़ा वक़्त… Continue reading भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें / ऐतबार साज़िद
इक सहमी सहमी सी आहट है / अहमद नदीम क़ासमी
इक सहमी सहमी सी आहट है, इक महका महका साया है एहसास की इस तन्हाई में यह रात गए कौन आया है ए शाम आलम कुछ तू ही बता, यह ढंग तुझे क्यों भाया है वोह मेरी खोज में निकला था और तुझ को ढूँढ के आया है मैं फूल समझ के चुन लूंगा इस… Continue reading इक सहमी सहमी सी आहट है / अहमद नदीम क़ासमी
दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे / अहमद नदीम क़ासमी
दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे, अब तुझे पा के यह उलझन है के खोये कैसे, ज़हन छलनी जो किया है, तो यह मजबूरी है, जितने कांटे हैं, वोह तलवों में पिरोयें कैसे, हम ने माना के बहुत देर है हश्र आने तक, चार जानिब तेरी आहट हो तो सोयें कैसे, कितनी… Continue reading दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे / अहमद नदीम क़ासमी
किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ / अहमद नदीम क़ासमी
किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ ज़ुल्म… Continue reading किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ / अहमद नदीम क़ासमी
न वो सिन है फ़ुर्सत ए इश्क़ का न वो दिन है कशफ़ ए जमाल के/ अहमद नदीम क़ासमी
न वो सिन है फ़ुर्सत-ए-इश्क़ का, न वो दिन हैं कशफ़-ए-जमाल के मगर अब भी दिल को जवाँ रखे, के मुद्दे ख़त-ओ-ख़ाल के ये तो गर्दाब-ए-हयात है, कोई इसकी जब्त से बचा नही मगर आज तक तेरी याद को मैं रखूं सम्हाल-सम्हाल के मैं अमीन-ओ-कद्र शनाज़ था, मुझे साँस-साँस का पाज़ था ये जबीं पे… Continue reading न वो सिन है फ़ुर्सत ए इश्क़ का न वो दिन है कशफ़ ए जमाल के/ अहमद नदीम क़ासमी
क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला / अहमद नदीम क़ासमी
क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकला ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने बू उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर डूब कर… Continue reading क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला / अहमद नदीम क़ासमी
इंक़लाब अपना काम करके रहा / अहमद नदीम क़ासमी
इंक़लाब अपना काम करके रहा बादलों में भी चांद उभर के रहा है तिरी जुस्तजू गवाह, कि तू उम्र-भर सामने नज़र के रहा रात भारी सही कटेगी जरूर दिन कड़ा था मगर गुज़र के रहा गुल खिले आहनी हिसारों के ये त’ आत्तर मगर बिखर के रहा अर्श की ख़िलवतों से घबरा कर आदमी फ़र्श… Continue reading इंक़लाब अपना काम करके रहा / अहमद नदीम क़ासमी