देह नृत्यशाला / अशोक चक्रधर

अँधेरे उस पेड़ के सहारे मेरा हाथ पेड़ की छाल के अन्दर ऊपर की ओर कोमल तव्चा पर थरथराते हुए रेंगा और जा पहुँचा वहाँ जहाँ एक शाख निकली थी । काँप गई पत्तियाँ काँप गई टहनी काँप गया पूरा पेड़ । देह नृत्यशाला आलाप-जोड़-झाला ।

चल दी जी, चल दी / अशोक चक्रधर

मैंने कहा चलो उसने कहा ना मैंने कहा तुम्हारे लिए खरीदभर बाज़ार है उसने कहा बन्द मैंने पूछा क्यों उसने कहा मन मैंने कहा न लगने की क्या बात है उअसने कहा बातें करेंगे यहीं मैंने कहा नहीं, चलो कहीं झुंझलाई क्या-आ है ? मैनें कहा कुर्ता ख़रीदना है अपने लिए । चल दी जी,… Continue reading चल दी जी, चल दी / अशोक चक्रधर

किधर गई बातें / अशोक चक्रधर

चलती रहीं चलती रहीं चलती रहीं बातें यहाँ की, वहाँ की इधर की, उधर की इसकी, उसकी जने किस-किस की, कि एकएक सिर्फ़ उसकी आँखों को देखा मैंने उसने देखा मेरा देखना । और… तो फिर… किधर गईं बातें, कहाँ गईं बातें ?

नख़रेदार / अशोक चक्रधर

भूख लगी है चलो, कहीं कुछ खाएं । देखता रहा उसको खाते हुए लगती है कैसी, देखती रही मुझको खाते हुए लगता हूँ कैसा । नख़रेदार पानी पिया नख़रेदार सिगरेट ढाई घंटे बैठ वहाँ बाहर निकल आए ।

पहले पहले / अशोक चक्रधर

मुझे याद है वह जज़्बाती शुरुआत की पहली मुलाक़ात जब सोते हुए उसके बाल अंगुल भर दूर थे लेकिन उन दिनों मेरे हाथ कितने मज़बूर थे ?

चेतन जड़ / अशोक चक्रधर

प्यास कुछ और बढ़ी और बढ़ी । बेल कुछ और चढ़ी और चढ़ी । प्यास बढ़ती ही गई, बेल चढ़ती ही गई । कहाँ तक जाओगी बेलरानी पानी ऊपर कहाँ है ? जड़ से आवाज़ आई– यहाँ है, यहाँ है ।

क्रम / अशोक चक्रधर

एक अंकुर फूटा पेड़ की जड़ के पास । एक किल्ला फूटा फुनगी पर । अंकुर बढ़ा जवान हुआ, किल्ला पत्ता बना सूख गया । गिरा उस अंकुर की जवानी की गोद में गिरने का ग़म गिरा बढ़ने के मोद में ।

सो तो है खचेरा / अशोक चक्रधर

गरीबी है- सो तो है, भुखमरी है – सो तो है, होतीलाल की हालत खस्ता है – सो तो खस्ता है, उनके पास कोई रस्ता नहीं है – सो तो है। पांय लागूं, पांय लागूं बौहरे आप धन्न हैं, आपका ही खाता हूं आपका ही अन्न है। सो तो है खचेरा ! वह जानता है… Continue reading सो तो है खचेरा / अशोक चक्रधर

माशो की माँ / अशोक चक्रधर

नुक्कड़ पर माशो की माँ बेचती है टमाटर । चेहरे पर जितनी झुर्रियाँ हैं झल्ली में उतने ही टमाटर हैं । टमाटर नहीं हैं वो सेव हैं, सेव भी नहीं हीरे-मोती हैं । फटी मैली धोती से एक-एक पोंछती है टमाटर, नुक्कड़ पर माशो की माँ । गाहक को मेहमान-सा देखती है एकाएक हो जाती… Continue reading माशो की माँ / अशोक चक्रधर

ठेकेदार भाग लिया / अशोक चक्रधर

फावड़े ने मिट्टी काटने से इंकार कर दिया और बदरपुर पर जा बैठा एक ओर ऐसे में तसले की मिट्टी ढोना कैसे गवारा होता ? काम छोड़ आ गया फावड़े की बगल में। धुरमुट की क़ंदमताल…..रुक गई, कुदाल के इशारे पर तत्काल, झाल ज्यों ही कुढ़ती हुई रोती बड़बड़ाती हुई आ गिरी औंधे मुंह रोड़ी… Continue reading ठेकेदार भाग लिया / अशोक चक्रधर