इच्छा-शक्ति / अशोक चक्रधर

ओ ठोकर ! तू सोच रही मैं बैठ जाऊंगी रोकर, भ्रम है तेरा चल दूंगी मैं फ़ौरन तत्पर होकर। ओ पहाड़! कितना भी टूटे हंस ले खेल बिगाड़, मैं भी मैं हूं नहीं समझ लेना मुझको खिलवाड़। ओ बिजली ! तूने सोचा यूं मर जाएगी तितली, बगिया जल जाएगी तितली रह जाएगी इकली। कुछ भी… Continue reading इच्छा-शक्ति / अशोक चक्रधर

वर्ग-विभाजन / अशोक चक्रधर

दुनिया में लोग होते हैं दो तरह के- पहले वे जो जीवन जीते हैं पसीना बहा के ! दूसरे वे जो पहले वालों का बेचते हैं- रूमाल, शीतल पेय, पंखे और…. ठहाके।

बौड़म जी बस में / अशोक चक्रधर

बस में थी भीड़ और धक्के ही धक्के, यात्री थे अनुभवी, और पक्के । पर अपने बौड़म जी तो अंग्रेज़ी में सफ़र कर रहे थे, धक्कों में विचर रहे थे । भीड़ कभी आगे ठेले, कभी पीछे धकेले । इस रेलमपेल और ठेलमठेल में, आगे आ गए धकापेल में । और जैसे ही स्टाप पर… Continue reading बौड़म जी बस में / अशोक चक्रधर

आम की पेटी / अशोक चक्रधर

गांव में ब्याही गई थी बौड़म जी की बेटी, उसने भिजवाई एक आम की पेटी। महक पूरे मुहल्ले को आ गई, कइयों का तो दिल ही जला गई। कुछ पड़ौसियों ने द्वार खटखटाया एक स्वर आया- बौड़म जी, हमें मालूम है कि आप आम ख़रीद कर नहीं लाते हैं, और ये भी पता है कि… Continue reading आम की पेटी / अशोक चक्रधर

तेरा इस्तेकबाल है / अशोक चक्रधर

कि हमारी आज़ादी भी पचास की पूरी होने आई। उसका भी लगभग यही हाल है अपने ऊपर मुग्ध है निहाल है ऊपरी वैभव का इंद्रजाल है पुरानी ख़ुशबुओं का रुमाल है समय के ग्राउंड की फुटबाल है एक तरफ चिकनी तो दूसरी तरफ रेगमाल है संक्रमण के कण कण में वाचाल है फिर भी खुशहाल… Continue reading तेरा इस्तेकबाल है / अशोक चक्रधर

पचास साल का इंसान / अशोक चक्रधर

पचास साल का इंसान न बूढ़ा होता है न जवान न वो बच्चा होता है न बच्चों की तरह कच्चा होता है। वो पके फलों से लदा एक पेड़ होता है, आधी उम्र पार करने के कारण अधेड़ होता है। पचास साल का इंसान चुका हुआ नहीं होता जो उसे करना है कर चुका होता… Continue reading पचास साल का इंसान / अशोक चक्रधर

बताइए अब क्या करना है / अशोक चक्रधर

कि बौड़म जी ने एक ही शब्द के जरिए पिछले पांच दशकों की झनझनाती हुई झांकी दिखाई। पहले सदाचरण फिर आचरण फिर चरण फिर रण और फिर न ! यही तो है पांच दशकों का सफ़र न ! मैंने पूछा- बौड़म जी, बताइए अब क्या करना है ? वे बोले- करना क्या है इस बचे… Continue reading बताइए अब क्या करना है / अशोक चक्रधर

पांच सीढ़ियां / अशोक चक्रधर

बौड़म जी स्पीच दे रहे थे मोहल्ले में, लोग सुन ही नहीं पा रहे थे हो-हल्ले में। सुनिए सुनिए ध्यान दीजिए, अपने कान मुझे दान दीजिए। चलिए तालियां बजाइए, बजाइए, बजाइए समारोह को सजाइए ! नहीं बजा रहे कोई बात नहीं, जो कुछ है वो अकस्मात नहीं। सब कुछ समझ में आता है, फिर बौड़म… Continue reading पांच सीढ़ियां / अशोक चक्रधर

ये बात मैंने आपको इसलिए बताई / अशोक चक्रधर

कि इन कविताओं में एन.डी.टी.वी. की डिमाण्ड पर माल किया गया है सप्लाई। इस सकंलन में ऐसी बहुत सी कविताएं नहीं हैं जो उन्होंने परदे पर दिखाईं, लेकिन ऐसी कई हैं जो अब तक नहीं आईं। कुछ बढ़ाईं, कुछ काटीं, कुछ छीली, कुछ छांटीं। कुछ में परिहास है, कुछ में उपहास है कुछ में शुद्ध… Continue reading ये बात मैंने आपको इसलिए बताई / अशोक चक्रधर