ठोकर खाकर हमने जैसे ही यंत्र को उठाया, मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई कुछ घरघराया। झटके से गरदन घुमाई, पत्नी को देखा अब यंत्र से पत्नी की आवाज़ आई- मैं तो भर पाई! सड़क पर चलने तक का तरीक़ा नहीं आता, कोई भी मैनर या सली़क़ा नहीं आता। बीवी साथ है यह तक भूल… Continue reading पोल-खोलक यंत्र / अशोक चक्रधर
Category: Hindi-Urdu Poets
तुम से आप / अशोक चक्रधर
तुम भी जल थे हम भी जल थे इतने घुले-मिले थे कि एक दूसरे से जलते न थे। न तुम खल थे न हम खल थे इतने खुले-खुले थे कि एक दूसरे को खलते न थे। अचानक हम तुम्हें खलने लगे, तो तुम हमसे जलने लगे। तुम जल से भाप हो गए और ‘तुम’ से… Continue reading तुम से आप / अशोक चक्रधर
कम से कम / अशोक चक्रधर
एक घुटे हुए नेता ने छंटे हुए शब्दों में भावुक तकरीर दी, भीड़ भावनाओं से चीर दी। फिर मानव कल्याण के लिए दिल खोल दान के लिए अपनी टोपी घुमवाई, पर अफ़सोस कि खाली लौट आई। टोपी को देखकर नेता जी बोले-अपमान जो होना है सो हो ले। पर धन्यवाद, आपकी इस प्रतिक्रिया से प्रसन्नता… Continue reading कम से कम / अशोक चक्रधर
कौन है ये जैनी? / अशोक चक्रधर
बीवी की नज़र थी बड़ी पैनी- क्यों जी, कौन है ये जैनी? सहज उत्तर था मियाँ का- जैनी, जैनी नाम है एक कुतिया का। तुम चाहती थीं न एक डौगी हो घर में, इसलिए दोस्तों से पूछता रहता था अक्सर मैं। पिछले दिनों एक दोस्त ने जैनी के बारे में बताया था। पत्नी बोली-अच्छा! तो… Continue reading कौन है ये जैनी? / अशोक चक्रधर
तो क्या यहीं? / अशोक चक्रधर
तलब होती है बावली, क्योंकि रहती है उतावली। बौड़म जी ने सिगरेट ख़रीदी एक जनरल स्टोर से, और फ़ौरन लगा ली मुँह के छोर से। ख़ुशी में गुनगुनाने लगे, और वहीं सुलगाने लगे। दुकानदार ने टोका, सिगरेट जलाने से रोका- श्रीमान जी!मेहरबानी कीजिए, पीनी है तो बाहर पीजिए। बौड़म जी बोले-कमाल है, ये तो बड़ा… Continue reading तो क्या यहीं? / अशोक चक्रधर
नया आदमी / अशोक चक्रधर
डॉक्टर बोला- दूसरों की तरह क्यों नहीं जीते हो, इतनी क्यों पीते हो? वे बोले- मैं तो दूसरों से भी अच्छी तरह जीता हूँ, सिर्फ़ एक पैग पीता हूँ। एक पैग लेते ही मैं नया आदमी हो जाता हूँ, फिर बाकी सारी बोतल उस नए आदमी को ही पिलाता हूँ।
फिर तो / अशोक चक्रधर
आख़िर कब तक इश्क इकतरफ़ा करते रहोगे, उसने तुम्हारे दिल को चोट पहुँचाई तो क्या करोगे? -ऐसा हुआ तो लात मारूँगा उसके दिल को। -फिर तो पैर में भी चोट आएगी तुमको।
सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर
एक बार बरखुरदार! एक रुपए के सिक्के, और पाँच पैसे के सिक्के में, लड़ाई हो गई, पर्स के अंदर हाथापाई हो गई। जब पाँच का सिक्का दनदना गया तो रुपया झनझना गया पिद्दी न पिद्दी की दुम अपने आपको क्या समझते हो तुम! मुझसे लड़ते हो, औक़ात देखी है जो अकड़ते हो! इतना कहकर मार… Continue reading सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर
गुनह करेंगे / अशोक चक्रधर
हम तो करेंगे गुनह करेंगे पुनह करेंगे। वजह नहीं बेवजह करेंगे। कल से ही लो कलह करेंगे। जज़्बातों को जिबह करेंगे निर्लज्जों से निबह करेंगे सुलगाने को सुलह करेंगे। हम ज़ालिम क्यों जिरह करेंगे संबंधों में गिरह करेंगे रस विशेष में विरह करेंगे जो हो, अपनी तरह करेंगे रात में चूके सुबह करेंगे गुनह करेंगे… Continue reading गुनह करेंगे / अशोक चक्रधर
कामना / अशोक चक्रधर
सुदूर कामना सारी ऊर्जाएं सारी क्षमताएं खोने पर, यानि कि बहुत बहुत बहुत बूढ़ा होने पर, एक दिन चाहूंगा कि तू मर जाए। (इसलिए नहीं बताया कि तू डर जाए।) हां उस दिन अपने हाथों से तेरा संस्कार करुंगा, उसके ठीक एक महीने बाद मैं मरूंगा। उस दिन मैं तुझ मरी हुई का सौंदर्य देखूंगा,… Continue reading कामना / अशोक चक्रधर