नीचे की घाटी से ऊपर के शिखरों पर जिस को जाना था वह चला गया – हाय मुझी पर पग रख मेरी बाँहों से इतिहास तुम्हें ले गया! सुनो कनु, सुनो क्या मैं सिर्फ एक सेतु थी तुम्हारे लिए लीलाभूमि और युद्धक्षेत्र के अलंघ्य अन्तराल में! अब इन सूने शिखरों, मृत्यु-घाटियों में बने सोने के… Continue reading कनुप्रिया – सेतु : मैं / धर्मवीर भारती
Category: Hindi-Urdu Poets
कनुप्रिया – विप्रलब्धा / धर्मवीर भारती
बुझी हुई राख, टूटे हुए गीत, डूबे हुए चाँद, रीते हुए पात्र, बीते हुए क्षण-सा – – मेरा यह जिस्म कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था तुम्हारे आश्लेष में आज वह जूड़े से गिरे जुए बेले-सा टूटा है, म्लान है दुगुना सुनसान है बीते हुए उतस्व-सा, उठे हुए मेले-सा – मेरा यह… Continue reading कनुप्रिया – विप्रलब्धा / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – केलिसखी / धर्मवीर भारती
आज की रात हर दिशा में अभिसार के संकेत क्यों हैं? हवा के हर झोंके का स्पर्श सारे तन को झनझना क्यों जाता है? और यह क्यों लगता है कि यदि और कोई नहीं तो यह दिगन्त-व्यापी अँधेरा ही मेरे शिथिल अधखुले गुलाब-तन को पी जाने के लिए तत्पर है और ऐसा क्यों भान होने… Continue reading कनुप्रिया – केलिसखी / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – आदिम भय / धर्मवीर भारती
अगर यह निखिल सृष्टि मेरा ही लीलातन है तुम्हारे आस्वादन के लिए- अगर ये उत्तुंग हिमशिखर मेरे ही – रुपहली ढलान वाले गोरे कंधे हैं – जिन पर तुम्हारा गगन-सा चौड़ा और साँवला और तेजस्वी माथा टिकता है अगर यह चाँदनी में हिलोरें लेता हुआ महासागर मेरे ही निरावृत जिस्म का उतार-चढ़ाव है अगर ये… Continue reading कनुप्रिया – आदिम भय / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – सृजन-संगिनी / धर्मवीर भारती
सुनो मेरे प्यार- यह काल की अनन्त पगडंडी पर अपनी अनथक यात्रा तय करते हुए सूरज और चन्दा, बहते हुए अन्धड़ गरजते हुए महासागर झकोरों में नाचती हुई पत्तियाँ धूप में खिले हुए फूल, और चाँदनी में सरकती हुई नदियाँ इनका अन्तिम अर्थ आखिर है क्या? केवल तुम्हारी इच्छा? और वह क्या केवल तुम्हारा संकल्प… Continue reading कनुप्रिया – सृजन-संगिनी / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – तुम मेरे कौन हो / धर्मवीर भारती
तुम मेरे कौन हो कनु मैं तो आज तक नहीं जान पाई बार-बार मुझ से मेरे मन ने आग्रह से, विस्मय से, तन्मयता से पूछा है- ‘यह कनु तेरा है कौन? बूझ तो !’ बार-बार मुझ से मेरी सखियों ने व्यंग्य से, कटाक्ष से, कुटिल संकेत से पूछा है- ‘कनु तेरा कौन है री, बोलती… Continue reading कनुप्रिया – तुम मेरे कौन हो / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – आम्र-बौर का अर्थ / धर्मवीर भारती
अगर मैं आम्र-बौर का ठीक-ठीक संकेत नहीं समझ पायी तो भी इस तरह खिन्न मत हो प्रिय मेरे! कितनी बार जब तुम ने अर्द्धोन्मीलित कमल भेजा तो मैं तुरत समझ गयी कि तुमने मुझे संझा बिरियाँ बुलाया है कितनी बार जब तुम ने अँजुरी भर-भर बेले के फूल भेजे तो मैं समझ गयी कि तुम्हारी… Continue reading कनुप्रिया – आम्र-बौर का अर्थ / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – आम्र-बौर का गीत / धर्मवीर भारती
यह जो मैं कभी-कभी चरम साक्षात्कार के क्षणों में बिलकुल जड़ और निस्पन्द हो जाती हूँ इस का मर्म तुम समझते क्यों नहीं मेरे साँवरे! तुम्हारी जन्म-जन्मान्तर की रहस्यमयी लीला की एकान्त संगिनी मैं इन क्षणों में अकस्मात तुम से पृथक नहीं हो जाती हूँ मेरे प्राण, तुम यह क्यों नहीं समझ पाते कि लाज… Continue reading कनुप्रिया – आम्र-बौर का गीत / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – पाँचवाँ गीत / धर्मवीर भारती
यह जो मैं गृहकाज से अलसा कर अक्सर इधर चली आती हूँ और कदम्ब की छाँह में शिथिल, अस्तव्यस्त अनमनी-सी पड़ी रहती हूँ…. यह पछतावा अब मुझे हर क्षण सालता रहता है कि मैं उस रास की रात तुम्हारे पास से लौट क्यों आयी ? जो चरण तुम्हारे वेणुवादन की लय पर तुम्हारे नील जलज… Continue reading कनुप्रिया – पाँचवाँ गीत / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – चौथा गीत / धर्मवीर भारती
यह जो दोपहर के सन्नाटे में यमुना के इस निर्जन घाट पर अपने सारे वस्त्र किनारे रख मैं घण्टों जल में निहारती हूँ क्या तुम समझते हो कि मैं इस भाँति अपने को देखती हूँ ? नहीं, मेरे साँवरे ! यमुना के नीले जल में मेरा यह वेतसलता-सा काँपता तन-बिम्ब, और उस के चारों ओर… Continue reading कनुप्रिया – चौथा गीत / धर्मवीर भारती