याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम आरज़ूओं के सुर्ख़ फूलों से दिल की बस्ती सजा रहे हैं हम आज तो अपनी ख़ामुशी में भी तेरी आवाज़ पा रहे हैं हम बात क्या है कि फिर ज़माने को याद रह-रह के आ रहे हैं हम जो कभी… Continue reading धूप निकली है मुद्दतों के बाद / बशीर बद्र
Category: Hindi-Urdu Poets
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम / बशीर बद्र
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम आरज़ूओं के सुर्ख़ फूलों से दिल की बस्ती सजा रहे हैं हम आज तो अपनी ख़ामुशी में भी तेरी आवाज़ पा रहे हैं हम बात क्या है कि फिर ज़माने को याद रह-रह के आ रहे हैं हम जो कभी… Continue reading याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम / बशीर बद्र
पत्थर जैसे मछली के कूल्हे चमके / बशीर बद्र
पत्थर जैसे मछली के कूल्हे चमके गंगा जल में आग लगा कर चले गये सात सितारे उड़ते घोड़ों पर आये पल्कों से कुछ फूल चुरा कर चले गये दीवारें, दीवारों की ज़ानिब सरकीं छत से बिस्तर लोग उठा कर चले गये तितली भागे तितली के पीछे-पीछे फूल आये और फूल चुरा कर चले गये सर्दी… Continue reading पत्थर जैसे मछली के कूल्हे चमके / बशीर बद्र
ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है / बशीर बद्र
ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है अजीब तिश्नगी इन बादलों से बरसी है मेरी निगाह मुख़ातिब से बात करते हुए तमाम जिस्म के कपड़े उतार लेती है सरों पे धूप की गठरी उठाये फिरते हैं दिलों में जिनके बड़ी सर्द रात होती है खड़े-खड़े मैं सफ़र कर रहा हूँ बरसों से ज़मीन पाँव के… Continue reading ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है / बशीर बद्र
चल मुसाफ़िर बत्तियां जलने लगीं / बशीर बद्र
चल मुसाफ़िर बत्तियाँ जलने लगीं आसमानी घंटियाँ बजने लगीं दिन के सारे कपड़े ढीले हो गए रात की सब चोलियाँ कसने लगीं डूब जायेंगे सभी दरिया पहाड़ चांदनी की नद्दियाँ चढ़ने लगीं जामुनों के बाग़ पर छाई घटा ऊदी-ऊदी लड़कियाँ हँसने लगीं रात की तन्हाइयों को सोचकर चाय की दो प्यालियाँ हँसने लगीं दौड़ते हैं… Continue reading चल मुसाफ़िर बत्तियां जलने लगीं / बशीर बद्र
उड़ती किरणों की रफ़्तार से तेज़ तर / बशीर बद्र
उड़ती किरणों की रफ़्तार से तेज़ तर नीले बादल के इक गाँव में जायेंगे धूप माथे पे अपने सजा लायेंगे साये पलकों के पीछे छुपा लायेंगे बर्फ पर तैरते रोशनी के बदन चलती घड़ियों की दो सुइयों की तरह दायरे में सदा घूमने के लिये आहिनी महवरों पर जड़े जायेंगे जब ज़रा शाम कुछ बेतकल्लुफ़… Continue reading उड़ती किरणों की रफ़्तार से तेज़ तर / बशीर बद्र
ख़ुश्बू को तितलियों के परों में छिपाऊंगा / बशीर बद्र
ख़ुश्बू को तितलियों के परों में छिपाऊँगा फिर नीले-नीले बादलों में लौट जाऊँगा सोने के फूल-पत्ते गिरेंगे ज़मीन पर मैं ज़र्द-ज़र्द शाख़ों पे जब गुनगुनाऊँगा घुल जायेंगी बदन पे जमी धूप की तहें अपने लहू में आज मैं ऐसा नहाऊँगा इक पल की ज़िंदगी मुझे बेहद अज़ीज़ है पलकों में झिलमिलाऊंगा और टूट जाऊँगा ये… Continue reading ख़ुश्बू को तितलियों के परों में छिपाऊंगा / बशीर बद्र
सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे / बशीर बद्र
सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे उजले फर के कोट पहने हल्के जाड़े आएँगे गीले-गीले मंदिरों में बाल खोले देवियाँ सोचती हैं उनके सूरज देवता कब आएँगे सुर्ख नीले चाँद-तारे दौड़ते हैं बर्फ़ पर कल हमारी तरह ये भी धुंध में खो जाएँगे दिन में दफ़्तर की कलम मिल की मशीनें सब… Continue reading सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे / बशीर बद्र
सुनो पानी में ये किसकी सदा है / बशीर बद्र
सुनो पानी में किसकी सदा है कोई दरिया की तह में रो रहा है सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा ख़ुदा चारों तरफ़ बिखरा हुआ है समेटो और सीने में छुपा लो ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है पके गेहूँ की ख़ुश्बू चीखती है बदन अपना सुनहरा हो चला है हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है… Continue reading सुनो पानी में ये किसकी सदा है / बशीर बद्र
सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं / बशीर बद्र
सियाहियों के बने हर्फ़-हर्फ़ धोते हैं ये लोग रात में काग़ज़ कहाँ भिगोते हैं किसी की राह में दहलीज़ पर दिया न रखो किवाड़ सूखी हुई लकड़ियों के होते हैं चराग़ पानी में मौजों से पूछते होंगे वो कौन लोग हैं जो कश्तियाँ डुबोते हैं क़दीम क़स्बों में क्या सुकून होता है थके थकाये हमारे… Continue reading सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं / बशीर बद्र