सुनो पानी में ये किसकी सदा है / बशीर बद्र

सुनो पानी में किसकी सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है

सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा
ख़ुदा चारों तरफ़ बिखरा हुआ है

समेटो और सीने में छुपा लो
ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है

पके गेहूँ की ख़ुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनहरा हो चला है

हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है
समंदर कैसा बूढ़ा देवता है

हमारी शाख़ का नौ-खेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक़्सर चूमता है

मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है

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