[भारत के स्वातन्त्र्योत्तर इतिहास का सबसे पहला और सबसे बड़ा हादसा था-अक्तूबर 1962 में चीन का आक्रमण। उसने न केवल सारे देश को हतप्रभ कर दिया था, हमारी दु:खद पराजय ने अब तक पाले हुए सारे सपनों के मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर दिया था और मानो एक ही चोट में नेहरू युग की सारी विसंगतियाँ… Continue reading पुराना क़िला / धर्मवीर भारती
Category: Dharmveer Bharti
पंचम अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
कृपाचार्य – यह क्या किया, अश्वत्थामा। यह क्या किया? अश्वत्थामा – पता नहीं मैंने क्या किया, मातुल मैंने क्या किया! क्या मैंने कुछ किया? कृतवर्मा – कृपाचार्य भय लगता है मुझको इस अश्वत्थामा से! (कृपाचार्य अश्वत्थामा को बिठाकर, उसका कमरबन्द ढीला करते हैं। माथे का पसीना पोंछते हैं।) कृपाचार्य – बैठो विश्राम करो तुमने कुछ… Continue reading पंचम अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
चतुर्थ अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
अश्वत्थामा – यह मेरा धनुष है धनुष अश्वत्थामा का जिसकी प्रत्यंचा खुद द्रोण ने चढ़ाई थी आज जब मैंने दुर्योधन को देखा नि:शस्त्र, दीन आँखों में आँसू भरे मैंने मरोड़ दिया अपने इस धनुष को। कुचले हुए साँप-सा भयावह किन्तु शक्तिहीन मेरा धनुष है यह जैसा है मेरा मन किसके बल पर लूँगा मैं अब… Continue reading चतुर्थ अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
तृतीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
कथा-गायन- संजय तटस्थद्रष्टा शब्दों का शिल्पी है पर वह भी भटक गया असंजस के वन में दायित्व गहन, भाषा अपूर्ण, श्रोता अन्धे पर सत्य वही देगा उनको संकट-क्षण में वह संजय भी इस मोह-निशा से घिर कर है भटक रहा जाने किस कंटक-पथ पर (पर्दा उठने पर वनपथ का दृश्य। कोई योद्धा बगल में अस्त्र… Continue reading तृतीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
द्वितीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
धृतराष्ट्र- विदुर- कौन संजय? नहीं! विदुर हूँ महाराज। विह्वल है सारा नगर आज बचे-खुचे जो भी दस-बीस लोग कौरव नगरी में हैं अपलक नेत्रों से कर रहे प्रतीक्षा हैं संजय की। (कुछ क्षण महाराज के उत्तर की प्रतीक्षा कर) महाराज चुप क्यों हैं इतने आप माता गान्धारी भी मौन हैं! धृतराष्ट्र- विदुर! जीवन में प्रथम… Continue reading द्वितीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
पहला अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
कौरव नगरी तीन बार तूर्यनाद के उपरान्त कथा-गायन टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है पाण्डव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय दोनों पक्षों को खोना ही खोना है अन्धों से शोभित था… Continue reading पहला अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
स्थापना /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
[नेपथ्य से उद्घोषणा तथा मंच पर नर्त्तक के द्वारा उपयुक्त भावनाट्य का प्रदर्शन। शंख-ध्वनि के साथ पर्दा खुलता है तथा मंगलाचरण के साथ-साथ नर्त्तक नमस्कार-मुद्रा प्रदर्शित करता है। उद्घोषणा के साथ-साथ उसकी मुद्राएँ बदलती जाती हैं।] मंगलाचरण नारायणम् नमस्कृत्य नरम् चैव नरोत्तमम्। देवीम् सरस्वतीम् व्यासम् ततो जयमुदीयरेत्। उद्घोषणा जिस युग का वर्णन इस कृति में… Continue reading स्थापना /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती
आद्यन्त / धर्मवीर भारती
1 जिन्दगी की डाल पर कण्टकों के जाल पर-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता ! कोयलों से सीखता जिन्दगी के मधुर गीत बुलबुलों से पालता हिलमिल कर प्रेम प्रीत पत्तियों के संग झूम तितलियों के पंख चूम चाँदी भरी रातों में- चन्द्र किरण डोर का डाल कर मृदुल हिण्डोला। कलियों के संग-संग धीमे-धीमे झूलता… Continue reading आद्यन्त / धर्मवीर भारती
रवीन्द्र से / धर्मवीर भारती
[रवीन्द्र जन्मशताब्दी के वर्ष : सोनारतरी (सोने की नाव) तथा उनकी अन्य कई प्यारी कविताएँ पढ़कर] नहीं नहीं कभी नहीं थी, कोई नौका सोने की ! सिर्फ दूर तक थी बालू, सिर्फ दूर तक अँधियारा वह थी क्या अपनी ही प्यास, कहा था जिसे जलधारा ? नहीं दिखा कोई भी पाल, नहीं उठी कोई पतवार… Continue reading रवीन्द्र से / धर्मवीर भारती
उसी ने रचा है / धर्मवीर भारती
नहीं-वह नहीं जो कुछ मैंने जिया बल्कि वह सब-वह सब जिसके द्वारा मैं जिया गया नहीं, वह नहीं जिसको मैंने ही चाहा, अवगाहा, उगाहा- जो मेरे ही अनवरत प्रयासों से खिला बल्कि वह जो अनजाने ही किसी पगडंडी पर अपने-आप मेरे लिए खिला हुआ मिला वह भी नहीं जिसके सिर पंख बाँध-बाँध सूर्य तक उड़ा… Continue reading उसी ने रचा है / धर्मवीर भारती