कनुप्रिया – सृजन-संगिनी / धर्मवीर भारती

सुनो मेरे प्यार- यह काल की अनन्त पगडंडी पर अपनी अनथक यात्रा तय करते हुए सूरज और चन्दा, बहते हुए अन्धड़ गरजते हुए महासागर झकोरों में नाचती हुई पत्तियाँ धूप में खिले हुए फूल, और चाँदनी में सरकती हुई नदियाँ इनका अन्तिम अर्थ आखिर है क्या? केवल तुम्हारी इच्छा? और वह क्या केवल तुम्हारा संकल्प… Continue reading कनुप्रिया – सृजन-संगिनी / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – तुम मेरे कौन हो / धर्मवीर भारती

तुम मेरे कौन हो कनु मैं तो आज तक नहीं जान पाई बार-बार मुझ से मेरे मन ने आग्रह से, विस्मय से, तन्मयता से पूछा है- ‘यह कनु तेरा है कौन? बूझ तो !’ बार-बार मुझ से मेरी सखियों ने व्यंग्य से, कटाक्ष से, कुटिल संकेत से पूछा है- ‘कनु तेरा कौन है री, बोलती… Continue reading कनुप्रिया – तुम मेरे कौन हो / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – आम्र-बौर का अर्थ / धर्मवीर भारती

अगर मैं आम्र-बौर का ठीक-ठीक संकेत नहीं समझ पायी तो भी इस तरह खिन्न मत हो प्रिय मेरे! कितनी बार जब तुम ने अर्द्धोन्मीलित कमल भेजा तो मैं तुरत समझ गयी कि तुमने मुझे संझा बिरियाँ बुलाया है कितनी बार जब तुम ने अँजुरी भर-भर बेले के फूल भेजे तो मैं समझ गयी कि तुम्हारी… Continue reading कनुप्रिया – आम्र-बौर का अर्थ / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – आम्र-बौर का गीत / धर्मवीर भारती

यह जो मैं कभी-कभी चरम साक्षात्कार के क्षणों में बिलकुल जड़ और निस्पन्द हो जाती हूँ इस का मर्म तुम समझते क्यों नहीं मेरे साँवरे! तुम्हारी जन्म-जन्मान्तर की रहस्यमयी लीला की एकान्त संगिनी मैं इन क्षणों में अकस्मात तुम से पृथक नहीं हो जाती हूँ मेरे प्राण, तुम यह क्यों नहीं समझ पाते कि लाज… Continue reading कनुप्रिया – आम्र-बौर का गीत / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – पाँचवाँ गीत / धर्मवीर भारती

यह जो मैं गृहकाज से अलसा कर अक्सर इधर चली आती हूँ और कदम्ब की छाँह में शिथिल, अस्तव्यस्त अनमनी-सी पड़ी रहती हूँ…. यह पछतावा अब मुझे हर क्षण सालता रहता है कि मैं उस रास की रात तुम्हारे पास से लौट क्यों आयी ? जो चरण तुम्हारे वेणुवादन की लय पर तुम्हारे नील जलज… Continue reading कनुप्रिया – पाँचवाँ गीत / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – चौथा गीत / धर्मवीर भारती

यह जो दोपहर के सन्नाटे में यमुना के इस निर्जन घाट पर अपने सारे वस्त्र किनारे रख मैं घण्टों जल में निहारती हूँ क्या तुम समझते हो कि मैं इस भाँति अपने को देखती हूँ ? नहीं, मेरे साँवरे ! यमुना के नीले जल में मेरा यह वेतसलता-सा काँपता तन-बिम्ब, और उस के चारों ओर… Continue reading कनुप्रिया – चौथा गीत / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – तीसरा गीत / धर्मवीर भारती

घाट से लौटते हुए तीसरे पहर की अलसायी बेला में मैं ने अक्सर तुम्हें कदम्ब के नीचे चुपचाप ध्यानमग्न खड़े पाया मैं न कोई अज्ञात वनदेवता समझ कितनी बार तुम्हें प्रणाम कर सिर झुकाया पर तुम खड़े रहे अडिग, निर्लिप्त, वीतराग, निश्चल! तुम ने कभी उसे स्वीकारा ही नहीं ! दिन पर दिन बीतते गये… Continue reading कनुप्रिया – तीसरा गीत / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – दूसरा गीत / धर्मवीर भारती

यह जो अकस्मात् आज मेरे जिस्म के सितार के एक-एक तार में तुम झंकार उठे हो- सच बतलाना मेरे स्वर्णिम संगीत तुम कब से मुझ में छिपे सो रहे थे। सुनो, मैं अक्सर अपने सारे शरीर को- पोर-पोर को अवगुण्ठन में ढँक कर तुम्हारे सामने गयी मुझे तुम से कितनी लाज आती थी, मैं ने… Continue reading कनुप्रिया – दूसरा गीत / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – पहला गीत / धर्मवीर भारती

ओ पथ के किनारे खड़े छायादार पावन अशोक-वृक्ष तुम यह क्यों कहते हो कि तुम मेरे चरणों के स्पर्श की प्रतीक्षा में जन्मों से पुष्पहीन खड़े थे तुम को क्या मालूम कि मैं कितनी बार केवल तुम्हारे लिए-धूल में मिली हूँ धरती में गहरे उतर जड़ों के सहारे तु्म्हारे कठोर तने के रेशों में कलियाँ… Continue reading कनुप्रिया – पहला गीत / धर्मवीर भारती

मुनादी / धर्मवीर भारती

खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का हुकुम शहर कोतवाल का… हर खासो-आम को आगह किया जाता है कि खबरदार रहें और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से कुंडी चढा़कर बन्द कर लें गिरा लें खिड़कियों के परदे और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें क्योंकि एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज… Continue reading मुनादी / धर्मवीर भारती