ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ अभी मैं अपने हिजाबात में पड़ा हुआ हूँ मुझे यक़ीं ही नहीं आ रहा के ये मैं हूँ अजब तवहहुम ओ शुबहात में पड़ा हुआ हूँ गुज़र रही है मुझे रौंदती हुई दुनिया क़दीम ओ कोहना रवायात में पड़ा हुआ हूँ बचाव का कोई रस्ता नहीं बचा मुझ में मैं… Continue reading ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ / अंजुम सलीमी
Category: Anjum Saleemi
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी / अंजुम सलीमी
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी जो खुल गई कभी मुझ पर मुनफ़िक़त अपनी मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा मुझे पसंद नहीं है मुदाख़ेलत अपनी मैं शर्म-सार हुआ अपने आप से फिर भी क़ुबूल की ही नहीं मैं ने माज़रत अपनी ज़माने से तो मेरा कुछ गिला नहीं बनता के… Continue reading मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी / अंजुम सलीमी
ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है / अंजुम सलीमी
ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है मैं ने इक शख़्स से उज्रत पे मोहब्बत की है ख़ुद को धुत्कार दिया मैं ने तो इस दुनिया ने मेरी औक़ात से बढ़ कर मेरी इज़्ज़त की है जी में आता है मेरी मुझ से मुलाक़ात न हो बात मिलने की नहीं बात तबीअत की… Continue reading ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है / अंजुम सलीमी
कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की / अंजुम सलीमी
कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की सारी हसरत निकल गई मेरी तन-आसानी की पड़ा हुआ हूँ शाम से मैं उसी बाग़-ए-ताज़ा में मुझ में शाख निकल आई है रात की रानी की इस चौपाल के पास इक बूढ़ा बरगद होता था एक अलामत गुम है यहाँ से मेरी कहानी की तुम… Continue reading कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की / अंजुम सलीमी
कागज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया / अंजुम सलीमी
कागज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया इक और मर्तबे पे मुझे रख दिया गया इक बे-बदन का अक्स बनाया गया हूँ मैं बे-आब आईने पे मुझे रख दिया गया कुछ तो खिंची खिंची सी थी साअत विसाल की कुछ यूँ भी फ़ासले पे मुझे रख दिया गया मुँह-माँगे दाम दे के ख़रीदा… Continue reading कागज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया / अंजुम सलीमी
जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ / अंजुम सलीमी
जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ जा निकलता हूँ किसी और ज़माने की तरफ़ आँख बे-दार हुई कैसी ये पेशानी पर कैसा दरवाज़ा खुला आईना-ख़ाने की तरफ़ ख़ुद ही अंजाम निकल आएगा इस वाक़िए से एक किरदार रवाना है फ़साने की तरफ़ हल निकलता है यही रिश्तों की मिस्मारी का लोग आ जाते… Continue reading जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ / अंजुम सलीमी
इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया / अंजुम सलीमी
इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया ये सफ़र भी मेरा राएगाँ रह गया हो गए अपने जिस्मों से भी बे-नियाज़ और फिर भी कोई दरमियाँ रह गया राख पोरों से झड़ती गई उम्र की साँस की नालियों में धुआँ रह गया अब तो रस्ता बताने पे मामूर हूँ बे-हदफ़ तीर था बे-कमाँ रह… Continue reading इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया / अंजुम सलीमी
इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे / अंजुम सलीमी
इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे इश्क़ भी जैसे कोई ज़ेहनी सहूलत है मुझे मैं ने तुझ पर तेरे हिज्राँ को मुक़द्दम जाना तेरी जानिब से किसी रंज की हसरत है मुझे ख़ुद को समझाऊँ के दुनिया की ख़बर-गीरी करूँ इस मोहब्बत में कोई एक मुसीबत है मुझे दिल नहीं रखता किसी… Continue reading इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे / अंजुम सलीमी
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ / अंजुम सलीमी
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ बे-कार कर सफ़र में कोई काम कर के आऊँ बे-मोल कर गईं मुझे घर की ज़रूरतें अब अपने आप को कहाँ नीलाम कर के आऊँ मैं अपने शोर ओ शर से किसी रोज़ भाग कर इक और जिस्म में कहीं आराम कर के आऊँ कुछ… Continue reading दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ / अंजुम सलीमी
दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया / अंजुम सलीमी
दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया दिल बुझने लगा था सो नज़ारे से उठाया बे-जान पड़ा देखता रहता था मैं उस को इक रोज़ मुझे उस ने इशारे से उठाया इक लहर मुझे खींच के ले आई भँवर में वो लहर जिसे मैं ने किनारे से उठाया घर में कहीं गुंजाइश-ए-दर ही नहीं रक्खी… Continue reading दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया / अंजुम सलीमी