दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता / अंजुम सलीमी

दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता इश्क़ में बाबा एक जनम से काम नहीं चल सकता बहुत दिनों से मुझ से है कैफ़ियत रोज़े वाली दर्द-ए-फ़रावाँ सीने में कोहराम नहीं चल सकता तोहमत-ए-इश्क़ मुनासिब है और हम पर जचती है हम ऐसों पर और कोई इल्ज़ाम नहीं चल सकता चम चम करते हुस्न… Continue reading दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता / अंजुम सलीमी

चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ / अंजुम सलीमी

चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ मैं ख़ाली हाथ ख़ज़ानों की सैर करता हुआ पुकारता है कोई डूबता हुआ साया लरज़ते आईना-ख़ानों की सैर करता हुआ बहुत उदास लगा आज ज़र्द-रू महताब गली के बंद मकानों की सैर करता हुआ मैं ख़ुद को अपनी हथेली पे ले के फिरता रहा ख़तर के सुर्ख़… Continue reading चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ / अंजुम सलीमी

बुझने दे सब दिए मुझे तनहाई चाहिए / अंजुम सलीमी

बुझने दे सब दिए मुझे तनहाई चाहिए कुछ देर के लिए मुझे तनहाई चाहिए कुछ ग़म कशीद करने हैं अपने वजूद से जा ग़म के साथिए मुझे तनहाई चाहिए उकता गया हूँ ख़ुद से अगर मैं तो क्या हुआ ये भी तो देखिए मुझे तनहाई चाहिए इक रोज़ ख़ुद से मिलना है अपने ख़ुमार में… Continue reading बुझने दे सब दिए मुझे तनहाई चाहिए / अंजुम सलीमी

अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ / अंजुम सलीमी

अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ पर निकल आते हैं परवाज़ भी कर लेता हूँ तुझ से ये कैसा तअल्लुक़ है जिसे जब चाहूँ ख़त्म कर देता हूँ आग़ाज़ भी कर लेता हूँ गुम्बद-ए-ज़ात में जब गूँजने लगता हूँ बहुत ख़ामोशी तोड़ के आवाज़ भी कर लेता हूँ यूँ तो इस… Continue reading अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ / अंजुम सलीमी

आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं / अंजुम सलीमी

आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं अपनी सोहबत में भी घबराया हुआ रहता था मैं अपना चेहरा मुझे कतबे की तरह लगता था अपने ही जिस्म में दफ़नाया हुआ रहता था मैं जिस मोहब्बत की ज़रूरत थी मेरे लोगों को उस मोहब्बत से भी बाज़ आया हुआ रहता था मैं तू नहीं आता… Continue reading आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं / अंजुम सलीमी