तीलियाँ / अंजू शर्मा

रहना ही होता है हमें अनचाहे भी कुछ लोगों के साथ, जैसे माचिस की डिबिया में रहती हैं तीलियाँ सटी हुई एक दूसरे के साथ, प्रत्यक्षतः शांत और गंभीर एक दूसरे से चुराते नज़रें पर देखते हुए हजारो-हज़ार आँखों से, तलाश में बस एक रगड़ की और बदल जाने को आतुर एक दावानल में, भूल… Continue reading तीलियाँ / अंजू शर्मा

ओ शिखर पुरुष / अंजू शर्मा

ओ शिखर पुरुष, हिमालय से भी ऊंचे हो तुम और मैं दूर से निहारती, सराहती क्या कभी छू पाऊँगी तुम्हे, तुम गर्वित मस्तक उठाये देखते हो सिर्फ आकाश को, जहाँ तुम्हारे साथी हैं दिनकर और शशि, और मैं धरा के एक कण की तरह, तुम तक पहुँच पाने की आस में उठती हूँ और गिर… Continue reading ओ शिखर पुरुष / अंजू शर्मा

मैं अहिल्या नहीं बनूंगी / अंजू शर्मा

हाँ मेरा मन आकर्षित है उस दृष्टि के लिए, जो उत्पन्न करती है मेरे मन में एक लुभावना कम्पन, किन्तु शापित नहीं होना है मुझे, क्योंकि मैं नकारती हूँ उस विवशता को जहाँ सदियाँ गुजर जाती हैं एक राम की प्रतीक्षा में, इस बार मुझे सीखना है फर्क इन्द्र और गौतम की दृष्टि का वाकिफ… Continue reading मैं अहिल्या नहीं बनूंगी / अंजू शर्मा

ड्राईंग / अंजू शर्मा

उसकी नन्ही सी दो आँखे चमक उठती है देखकर तस्वीरों की किताब, लाल पीले हर नीले सभी रंग लुभाते हैं उसे पर माँ क्यों थमा देती है अक्सर काला तवा जब लौट कर आती है बड़ी कोठी के काम से थककर, और वो निर्विकार बनाती है नन्हे हाथों से कच्ची रोटी पर ड्राईंग माँ से… Continue reading ड्राईंग / अंजू शर्मा

चलो मीत / अंजू शर्मा

चलो मीत, चलें दिन और रात की सरहद के पार, जहाँ तुम रात को दिन कहो तो मैं मुस्कुरा दूं, जहाँ सूरज से तुम्हारी दोस्ती बरक़रार रहे और चाँद से मेरी नाराज़गी बदल जाये ओस की बूंदों में, चलो मीत, चलें उम्र की उस सीमा के परे जहाँ दिन, महीने, साल वाष्पित हो बदल जाएँ… Continue reading चलो मीत / अंजू शर्मा

चाँद / अंजू शर्मा

कभी कभी किसी शाम को, दिल क्यों इतना तनहा होता है कि भीड़ का हर ठहाका कर देता है कुछ और अकेला, और चाँद जो देखता है सब पर चुप रहता है, क्यों नहीं बन जाता उस टेबल का पेपरवेट जहाँ जिंदगी की किताब के पन्ने उलटती जाती है, वक़्त की आंधी, या क्यों नहीं… Continue reading चाँद / अंजू शर्मा

लड़की / अंजू शर्मा

एक दिन समटते हुए अपने खालीपन को मैंने ढूँढा था उस लड़की को, जो भागती थी तितलियों के पीछे सँभालते हुए अपने दुपट्टे को फिर खो जाया करती थी किताबों के पीछे, गुनगुनाते हुए ग़ालिब की कोई ग़ज़ल अक्सर मिल जाती थी वो लाईब्ररी में, कभी पाई जाती थी घर के बरामदे में बतियाते हुए… Continue reading लड़की / अंजू शर्मा

आग और पानी / अंजू शर्मा

कहा था किसी ने मुझे कि आग और पानी का कभी मेल नहीं होता सुनो मैंने इसे झूठ कर दिखाया है, तुम्हारे साथ रहने की ये प्रबल उत्कंठा, परे है सब समीकरणों से, और अनभिज्ञ है, किसी भी रासायनिक या भौतिक प्रक्रिया से, हर बार तुम्हारे मिथ्या दंभ की आग में बर्फ सी जली हूँ… Continue reading आग और पानी / अंजू शर्मा

बड़े बाबू / अंजू शर्मा

बड़े बाबू आज रिटायर हो गए, सदा अंकों से घिरे रहने वाले बड़े बाबू, तमाम उम्र गिनती में निकल गयी, आज भी कुछ गिन रहे हैं…… गिन रहे हैं जवान बेटी के बढ़ते साल, एक न्यूनतम सुविधाओं पर जीती आई पत्नी के चेहरे की बढती झुर्रियां, उसकी मौन शिकायतें, बेरोजगार बेटे की नाकाम डिग्रियां, और… Continue reading बड़े बाबू / अंजू शर्मा

विलुप्त प्रजाति / अंजू शर्मा

ओ नादान स्त्री, सुन रही हो खामोश, दबी आहट उस प्रचंड चक्रवात की बेमिसाल है जिसकी मारक क्षमता, जो बढ़ रहा तुम्हारी ओर मिटाते हुए तुम्हारे नामोनिशान, जानती हो गुम हो जाती हैं समूची सभ्यताएं ओर कैलंडर पर बदलती है सिर्फ तारीख, क्या बहाए थे आंसू किसी ने मेसोपोटामिया के लिए या सिसका था कोई… Continue reading विलुप्त प्रजाति / अंजू शर्मा