गाँधी के लिए / अंजू शर्मा

सुनो राष्ट्रपिता, जब भी खंगाला गया इतिहास निशाने पर थे तुम और संगीनों की नोक से मजलूमों के सीने पर गुदता रहा ‘अहिंसा’, मैंने देखा है तुम्हें बरस-दर-बरस बदलते एक ऐसी दीवार में जहाँ टंगे तुम्हारे चित्र पर अंकित किये जाते रहे गुणदोष, हर एक दशक पर पर बदलती रही तुम्हारे संयम और दृढ-इच्छाशक्ति की… Continue reading गाँधी के लिए / अंजू शर्मा

मलाला सिर्फ एक नहीं है… / अंजू शर्मा

आँख से बहते आंसू के हर कतरे का व्यर्थ बह जाना भी आज पाप माना जायेगा, आओ, कि बदल दे उसे रक्तबीज में जो उबल रहा है मेरे और आपके सीने में, सूंघ लो फिजा में घुलते उस ज़हर को जिसका निशाना है कमसिन मुस्कुराहटें, इससे पहले कि वो मासूमियत बदल जाये कब्र पर रखे… Continue reading मलाला सिर्फ एक नहीं है… / अंजू शर्मा

हमें बक्श दो मनु, हम नहीं हैं तुम्हारे वंशज / अंजू शर्मा

सोचती हूँ मुक्ति पा ही लूँ अपने नाम के पीछे लगे इन दो अक्षरों से जिनका अक्सर स्वागत किया जाता है माथे पर पड़ी कुछ आड़ी रेखाओं से, जड़ों से उखड़ कर अलग अलग दिशाओं में गए मेरे पूर्वज तिनके तिनके जमा कर घोंसला ज़माने की जुगत में कभी नहीं ढो पाए मनु की समझदारी… Continue reading हमें बक्श दो मनु, हम नहीं हैं तुम्हारे वंशज / अंजू शर्मा

औरत और इंसान / अंजू शर्मा

सोच के एक जरूरी मुकाम पर अक्सर ये लगता है कि क्यों न सोचा जाए उन सभी संभावनाओं पर जहाँ एक औरत और एक इंसान बन जाएँ समानार्थी शब्द एक औरत बने हुए ही बहुत ही सहज, सुगम बल्कि है एक इंसान बनना बहुत से मूल अधिकार स्वतः ही भर देते हैं व्यक्तित्व की झोली,… Continue reading औरत और इंसान / अंजू शर्मा

कामना / अंजू शर्मा

हमारे रिश्ते के बीच ऊब में डूबते तमाम पुल टूट जाने से पहले खो जाना चाहती हूँ मंझधार में, शायद कभी कभी डूबना, पार लगने से कहीं ज्यादा पुरसुकून होता है, बेपरवाह गुजरने की ख्वाहिश ऊँगली थामे है उन सभी पुरखतर रास्तों पर जहाँ लगे होते हैं साईनबोर्ड निषेध के, जंग खाए परों को तौलकर… Continue reading कामना / अंजू शर्मा

दोराहा / अंजू शर्मा

यह तय था उन्हें नहीं चाहिए थी तुम्हारी बेबाकी तुम्हारी स्वतंत्रता, तुम्हारा गुरुर, और तुम्हारा स्वाभिमान, तुम सीखती रही छाया पकड़ना, तुम बनाती रही रेत के कमज़ोर घरोंदे, तुम सजती रही उनकी ही सौंपी बेड़ियों से, वे मांगते रहे समझौते, वे चाहते रहे कमिटमेंट, वे चुराते रहे उपलब्धियां, वे बनाते रहे दीवारें, तुम बदलती रही… Continue reading दोराहा / अंजू शर्मा

इंकार / अंजू शर्मा

वे बड़े थे, बहुत बड़े, वे बहुत ज्ञानी थे, बड़े होने के लिए जरूरी हैं कितनी सीढियाँ वे गिनती जानते थे, वे केवल बड़े बनने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें बखूबी आता था बड़े बने रहने का भी हुनर, वे सिद्धहस्त थे आंकने में अनुमानित मूल्य इस समीकरण का, कि कितना नीचे गिरने पर कोई… Continue reading इंकार / अंजू शर्मा

मुस्कान / अंजू शर्मा

मैं हर रोज उसे देखता हूँ बालकोनी में कपडे सुखाती या मनीप्लांट संवारती वह नवविवाहिता हर रोज़ ओढ़े रहती है किसी विमान परिचारिका-सी मुस्कान मेरा कलम चलाता हाथ या चश्में से अख़बार की सुर्खियाँ पीती आँखें या हाथ में पकड़ा ठंडी होती कॉफ़ी का उनींदा कप या कई दिनों बाद दाढ़ी बनाने को बमुश्किल तैयार… Continue reading मुस्कान / अंजू शर्मा

बिछड़े दोस्त के लिए / अंजू शर्मा

अगर मैं कह दूँ कि हम आम दोस्त थे तो ये वाक्य सच्चाई से उतना ही दूर होगा जितनी दूरी थी हमारे कदमों के बीच इस दूरी का कारण कुछ भी हो सकता है शायद इसलिए कि तुम्हारे और मेरे सपनों की मंज़िलें कुछ और थीं, या शायद इसलिए कि तुम तुम थे, और मैं… Continue reading बिछड़े दोस्त के लिए / अंजू शर्मा

महानगर में आज / अंजू शर्मा

अक्सर, जब बिटिया होती है साथ और करती है मनुहार एक कहानी की, रचना चाहती हूँ …सपनीले इन्द्रधनुष, चुनना चाहती हूँ …कुछ मखमली किस्से, यूँ हमारे मध्य तैरती रहती हैं कई रोचक कहानियां, किन्तु इनमें परियों और राजकुमारियों के चेहरे इतने कातर पहले कभी नहीं थे, औचक खड़ी सुकुमारियाँ भूल जाया करती हैं टूथपेस्ट के… Continue reading महानगर में आज / अंजू शर्मा