बेटी के लिए / अंजू शर्मा

दर्द के तपते माथे पर शीतल ठंडक सी मेरी बेटी मैं ओढा देना चाहती हूँ तुम्हे अपने अनुभवों की चादर माथे पर देते हुए एक स्नेहिल बोसा मैं चुपके से थमा देती हूँ तुम्हारे हाथ में कुछ चेतावनियों भरी पर्चियां, साथ ही कर देना चाहती हूँ आगाह गिरगिटों की आहट से तुम जानती हो मेरे… Continue reading बेटी के लिए / अंजू शर्मा

मुआवजा / अंजू शर्मा

कविता के बदले मुआवज़े का अगर चलन हो तो संभव है मैं मांग बैठूं मधुमक्खियों से ताज़ा शहद कि भिगो सकूँ कुछ शब्दों को इसमें, ताकि विदा कर सकूँ कविताओं से कम-से -कम थोड़ी सी तो तल्खी, या मैं मांग सकती हूँ कुछ नए शब्द भी जिन्हें मैं प्रयोग कर सकूँ, अपनी कविताओं में दुःख,… Continue reading मुआवजा / अंजू शर्मा

साल 1984 / अंजू शर्मा

कुछ तारीखें, कुछ साल अंकित हो जाते हैं आपकी स्मृति में, ठीक उसी तरह जैसे महिलाएं याद रखा करती थीं बच्चों के जन्म की तारीख, सालों के माध्यम से, बडकी जन्मी थी जिस साल पाकिस्तान से हुई थी लड़ाई, लगत पूस की तीज को, या मुन्नू जन्मा था जिस साल इंदिरा ने लगायी थी इमरजेंसी… Continue reading साल 1984 / अंजू शर्मा

स्वीकारोक्ति / अंजू शर्मा

इन दिनो मैं कम लिखती हूँ तमाम बेचैन रातों और करवटों के मुसलसल सिलसिले के बावजूद मेरे लिए सुकून का मसला रहा है कविताओं का कम और कमतर होते जाना हो सकता है गैर-मामूली हो ये बयान कि मैं इंतज़ार में हूँ कुछ लिखी गयी कविताओं के खो जाने के…

सीख / अंजू शर्मा

पिता सिखा रहे थे अच्छे और बुरे की तमीज, उसने सीखा अच्छाई के मुकाबले बुराई बहुत जल्दी समूह में बदल जाती है…

हथियार / अंजू शर्मा

बुराई से सतत लड़ाई में विरोध के लिए वह तलाश रहा था सबसे कारगर तरीका, हुआ यूं कि घातक हथियारों की गली से गुजरते हुए उस शख्स ने अपनी कलम को कसकर पकड़ लिया…

भरोसा / अंजू शर्मा

शब्द यदि भौतिक होते तो यह कहना मुश्किल न होता कि भरोसा शब्दकोश का सर्वाधिक क्षतिग्रस्त शब्द है, हालांकि जरूरी है भरोसे का सबसे अधिक प्रयोग किये जाने वाले शब्द में बदला जाना भरोसा और धोखा दोनों अक्सर पूरक शब्दों-सा बर्ताव करते प्रतीत होते हैं भरोसा जितना अधिक हो उतना ही बड़ा होता है धोखे… Continue reading भरोसा / अंजू शर्मा

कुछ हाथ मेरे सपने में आते हैं / अंजू शर्मा

सुनिए मुझे कुछ कहना है आपसे, मेरी रातें इन दिनों एक अज़ाब की गिरफ्त में हैं और मेरे दिन उसे पहेली से सुलझाया करते हैं, पिछले कुछ दिनों से अक्सर कुछ हाथ में मेरे सपने में आते हैं मैं गौर से देखती हूँ इन हाथों का रंग जो हर रात बदलता रहता है दिल्ली के… Continue reading कुछ हाथ मेरे सपने में आते हैं / अंजू शर्मा

यह समय हमारी कल्पनाओं से परे है / अंजू शर्मा

यह कह पाना दरअसल उतना ही दुखद है जितना कि ये विचार, कि यह समय कुंद विचारों से जूझती मानसिकताओं का है हालांकि इसे सीमित समझ का नाम देकर खारिज करना आसान है, पर हमारी कल्पनाओं से परे, बहुत परे है आज के समय की तमाम जटिलताएँ, पहाड़ से दुखों तले मृत्यु से जूझते हजारों… Continue reading यह समय हमारी कल्पनाओं से परे है / अंजू शर्मा

दु:ख: पाँच कवितायें / अंजू शर्मा

(1) दबे पाँव रेंगता आता है दुख जीवन में, स्थायी बने रहने के लिए लड़ता है सुख से एक अंतहीन लड़ाई, दुख को रोक पाने जब नाकामयाबी मिले तो कर लेनी चाहिए एक दुख से दोस्ती एक छोटा सा दुख रो लेता है साथ कभी भी, कहीं भी (2) सुख की क्षणिक लहरों में डूबते… Continue reading दु:ख: पाँच कवितायें / अंजू शर्मा