ऐ इश्क़ तूने अक्सर क़ौमों को खा के छोड़ा / अल्ताफ़ हुसैन हाली

ऐ इश्क़! तूने अक्सर क़ौमों को खा के छोड़ा जिस घर से सर उठाया उस घर को खा के छोड़ा [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”नेक लोग”]अबरार[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  तुझसे तरसाँ [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”सभ्य लोग”]अहरार[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  तुझसे लरज़ाँ जो [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”समक्ष”]ज़द[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  पे तेरी आया इसको गिरा के छोड़ा [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”राजाओं”]रावों[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  के राज छीने, शाहों के ताज छीने [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”घमण्डियों”]गर्दनकशों[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip]  को अक्सर नीचा दिखा के छोड़ा क्या… Continue reading ऐ इश्क़ तूने अक्सर क़ौमों को खा के छोड़ा / अल्ताफ़ हुसैन हाली

जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजियेगा / अल्ताफ़ हुसैन हाली

जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजिएगा ये भेद है अपनी ज़िन्दगी का बस इसकी चर्चा न कीजिएगा इसी में है ख़ैर हज़रते-दिल! कि यार भूला हुआ है हमको करे वो याद इसकी भूल कर भी कभी तमन्ना न कीजिएगा कहे अगर कोई तुझसे वाइज़! कि कहते कुछ और करते हो कुछ… Continue reading जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजियेगा / अल्ताफ़ हुसैन हाली

फ़रिश्ते से बेहतर है इन्सान बनना / अल्ताफ़ हुसैन हाली

बढ़ाओ न आपस में मिल्लत ज़ियादा मुबादा कि हो जाए नफ़रत ज़ियादा तक़ल्लुफ़ अलामत है बेग़ानगी की न डालो तक़ल्लुफ़ की आदत ज़ियादा करो दोस्तो पहले आप अपनी इज़्ज़त जो चाहो करें लोग इज़्ज़त ज़ियादा निकालो न रख़ने नसब में किसी के नहीं कोई इससे रज़ालत ज़ियादा करो इल्म से इक़्तसाबे-शराफ़त नसाबत से है ये… Continue reading फ़रिश्ते से बेहतर है इन्सान बनना / अल्ताफ़ हुसैन हाली

इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद/ अल्ताफ़ हुसैन हाली

इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद ख़ुद-ब-ख़ुद, दिल में है इक शख़्स समाया जाता शब को ज़ाहिद से न मुठभेड़ हुई ख़ूब हुआ नश्अ ज़ोरों पे था शायद न छुपाया जाता लोग क्यों शेख़ को कहते हैं कि अय्यार है वो उसकी सूरत से तो ऐसा नहीं पाया जाता अब तो [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip… Continue reading इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद/ अल्ताफ़ हुसैन हाली

धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली

धूम थी अपनी पारसाई की की भी और किससे आश्नाई की क्यों बढ़ाते हो इख़्तलात बहुत हमको ताक़त नहीं जुदाई की मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे तुमको आदत है ख़ुदनुमाई की न मिला कोई ग़ारते-ईमाँ रह गई शर्म पारसाई की मौत की तरह जिससे डरते थे साअत आ पहुँची उस जुदाई की ज़िंदा फिरने की… Continue reading धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली